Sunday, December 31, 2017

#नया_साल

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.

#नया_साल
आपके लिए अच्छे अनुभव लेकर आये।

जो बिता वो कल था अब जो आएगा उसकी तैयारी करें,
वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता तो हम क्यों किसी भी
एक कारण के लिए किसी मोड़ पर रुक जाये।


एक साल गया एक आ रहा है किसी के लिए सिर्फ एक कैलंडर होगा मेरे लिए एक अनुभव है,
जिंदगी में कुछ भी बेवजह नहीं होता पर इसका मतलब
ये नहीं के जिन चीजों की वजह नही मिल रही उनके लिए हम परेशान हो।


हर चीज़ का एक सही समय होता है किसी को
बिना परखे मत आंको हर किसी को मोका दो,
 क्योंकि कुछ चीज़ों की अहमियत उसे खोने के बाद पता चलती है।


जिंदगी में सब करो नये लोगो से मिलो नयी चीज़े करो अपने डर को आजमाओ,
ख्वाइशों की लिस्ट बनाओ और खुद को वक़्त दो और
 लग जाओ एक एक करके उन्हें पूरा करने में।


गलतियां करो उसे सिख मिलेगी बस हर गलती दोहराना मत,
बाकि अपनी काबिलियत पर भरोसा रखना।

कामयाबी पर शोर मत मचाना और बुरे वक़्त में किसी और
को दोष मत देना,क्योंकि खुसी आंसू सबके हिस्से होता है।

धन्यवाद
मनीष पुंडीर

Thursday, December 28, 2017

#हो_कोई_ऐसा??

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.


#हो_कोई_ऐसा??
 
हो कोई ऐसा जिसे हम अपना कहें ,
चाहें हो जितनी भी दूरी पर वो हर वक़्त ख्यालो में रहे..

जिसकी हस्सी की वजह बने को मन करे,
जिसके एक रिप्लाई को हम अपनी निंदो से बगावत करे...

जिसके गले लगने से सुकून का एहसास हो,
कोई हो ऐसा एक जिसके लिए सिर्फ आप खास हो।

जिसके ख्याल तकिये पर रख खुली आँखो से सपने आये,
जिसकी एक गुड मॉर्निंग से आपका पूरा दिन बन जाये।

हो एक ऐसा भी यार जो तेरी बातों  को अच्छे-बुरे के तराज़ू में न तोले,
जिसके साथ वक़्त का होश न हो....जो समझे इशारों की भी जुबान बिन बोले।

जिसके लिए वक़्त से और मोहलत मांगने को मन करे,
जिसे दिल की हो बातें सारी और जिसे देख देख आँखों की नियत न भरे।

जिसको रत 3 बजे आंख खुलने पर कॉल करने से पहले सोचना न पड़े,
हो कोई ऐसा जो अपनी हर फ़िक्र में तुम्हारा ही जिक्र करे.......

अगर है कोई ऐसा तो खुश रखना उसे क्युकी खुसनसीब हो तुम........

#mani

Saturday, December 16, 2017

हसरतें

#हसरते
  लाखों हसरते है ऐसी के न बताई जाये न दबाई जाये, दुनियां बड़ी चंट न समझ आये और न अपनी किसी को समझाई जाये.....

परिंदा बन उड़ने को मन खूब ज़िद तो करता है,पर मज़बूरी शिकार खूब जानती है ये बात इसे कैसे समझाई जाये ??

नदी किनारें सभी अहसासों का  एक दिन में हिसाब करूँगा , लहरें पैरों को छूकर फिर लौट जायेगी पर मैं नही माफ़ करूँगा।।

आईने में देख खुद को आँखों में बचपन टटोलता हूँ, अक़्सर अधुरी ख्वाइशों का बोझ लेकर तकिए पर सोता हूं।।

इस शहर के शोर से दूर कही दूर बस जाऊ जहाँ दिए के उजाले में आज भी दादी-नानी सर सहलाये, बारिश के पानी में कस्ती अपनी बढ़ाये आज फिर किसी बगीचे से आम तोड़ के खाये।।

कुछ है मेरी हसरतें जो पैसे से कीमती है बेचूँगा किसी दिन इन्हें कोई ख़रीदार मिला तो, पर फिर मन ये पूछे मुझसे इन दो कौड़ी के जज़्बातों की क्या कीमत लगाई जाए ??

वैसे मेरे अपने कहते है हँसना भूल गया हूं मैं अब उन्हें क्या वजह बताई जाये, मेरे यारों खुश हूँ तुम हो बस ख़ुद से खफ़ा हूं अब छोड़ो यार क्या नाराजगी जताई जाये।।

#मनीष पुंडीर

Wednesday, December 13, 2017

#नौकरी

#घर_नौकरी 

छोड़ आया उन्हें जिन्होंने कभी हमे न अकेला छोड़ा था,
कमाने के बहाने जब हमने घर छोड़ा था।

घर भी अपने अब मोहलत पर जाते है,
आते वक़्त कुछ यादों को और जल्दी वापस आने का वादा कर आते है।


अब तो रूम लेकर रहते है घर छोड़ कर, 
बस लगे है हम भी सबकी तरह कमाई की दौड़ पर।


कभी अपनों की न सुनी आज बोस की हाँ में हाँ  मिलाते है,
कभी माँ पीछे दौड़ती थी खाने को लेकर आज अपने हाथ की जली रोटी खाते है।


Incriment/promotion वाले लोलीपोप के लालच में मशीन हम हो गए,
punctuality के चक्कर में कभी कभी तो खुली आँखों से ही सो गए।


कमाने के चक्कर में दोस्त खर्च होते जा रहे है,
छुटी मांगने जाओ तो बॉस याद दिला देता है के Increment नज़दीक अ रहे है।



नौकरी दो ही शब्दों पर टिकी है yes or sorry बाकि ज़ुबान बंद रखने को ही शायद professionalism कहते है ,कभी कभी तो सोचता हूँ के हमसे जयदा अपनी मर्ज़ी के मालिक वो है जो चाट-मूंगफली के ठेले लगा के बैठे है।

#मनीष पुंडीर

Sunday, December 10, 2017

कड़वी सच्चाई

 #कड़वी_सच्चाई

रंगत इस जमाने की बताऊ क्या, हर रिश्ते में बंदिशे है जताऊ क्या ??



कोई कह कर खुश् है..कोई चुप रह कर, 
किसी को राम नाम में आराम है,
किसी को राधा का दर्ज़ा मिला कोई मीरा बन बदनाम है।


कदर यहाँ अब की है तब का कोई हिसाब रखता नहीं,
गिरगिट तो खाली बैठे है इंसान ही अब रंग बदलने से रुकता नहीं।


आज साथ में हो तो तू ही यार ही कल का किया सब बेकार है,
रिश्तों का क्या कहे अब  नफ़ा-नुकसान का कारोबार है।


रोया तो अकेला था कामयाबी में न जाने भीड़ कहा से आ गयी,
सच्चा था तो किसी ने न पूछा पर बदला तो मेरी मकारी सबको भा गयी।


सच से सबको अब चीड़ है झूठ सुनके सब यहाँ सुकून पाते है,
ग़लती यहाँ सबको नज़र आती है पर खुद को बदलना कोई चाहता नहीं।


#मनीष पुंडीर

Saturday, December 9, 2017

जिंदगी_नौकरी

#जिंदगी_नौकरी
आज मंज़िल का पता नहीं पर दुनियादारी की रफ़्तार में दौड़ हम भी रहे है,
रोज़ का सफ़र है राह भी वहीँ है बस रोज़ अहसास ही नये है।

कमाने के चला तो बहुत कुछ गवा बैठा सोने को गया तो ख्यालों ने घेर लिया,
ठोकरे भी खायी चालाकी से भी रूबरू हुवे पर ये मन के कच्चे लालच ने फिर बचपन की ओर मुँह फेर लिया।

दो पन्नों की डिग्री ने हमे पढ़ा-लिखा बता दिया बाकि जिम्मेदारियां का डर हमें थोड़ा काबिल भी बना गया,
फ़िर नौकरी से पाला पड़ा और सब धरा का धरा रह गया कलयुग में कव्वा मोती खयेगा कोई बहुत सही कह गया।

उम्र और समजदारी का एक दूसरे से कोई मेल नहीँ रहा पैसों से आजकल इज़्ज़त तोली जाती हैं,
सुकून अकेले रह कर मिलता हैं वरना तरक़्क़ी पर भीड़ साथ ही आती है।

#मनीष पुंडीर

Tuesday, December 5, 2017

तलाश

#तलाश
     
कहाँ कहाँ घूम आता है मन कुछ #सुकून पाने की प्यास में, 
ऐसा क्या नहीं हम में जो है उस ख़ास में। 


#उम्मीद का रास्ता मोक्ष तक ले जयेगा ये तो बाद की लड़ाई है,
सफ़र तो ये नासूर है जिसमें इन्तेहाँनो की सीधी चढ़ाई है।


कैसा दौर है क्या दस्तूर है दगा किसी ने की नहीं और सगा कोई रहा नहीं,
 #दुनियादारी भी क्या खूब निभी हमने सबकी कदर की पर किसी ने हमें चाहा नहीं।


सावन भी आया पतझड़ भी लौटा पर मैं उस मोड़ पर आज भी वही ठहरा , 
हिसाब भी लगया नुकसान भी समझा पर क्या करूँ मैं #नासमझ जो ठहरा।


अब समझ ये नही आता है ये एहसास लाश है या #तलाश बेजान सी हो चली मेरी ख्वाइशें, 
बड़ा चंट है मन मेरा मूड अच्छा देखर बदल देता है फरमाइशें।.

#मनीष_पुंडीर

Monday, December 4, 2017

सर्दी की धूप

#सर्दी_कि_धूप 

 


तू सर्दी कि धूप सा छू जा मेरे ठन्डे पड़े एहसासों पर और उन्हें खुशनुमा करदे,
मै भी खिल जाऊ तेरी गर्माहट से जो तू मुझे बाहों में भरले।


गलत सही से परे सोच की उदेढ़ बुन छोड़ कभी मुझे वो पल दे जो किसी अच्छे बुरे के पैमानों से परे हो,
तेरे हसने की वजह...तेरे रूठने का अंदाज़...हो कुछ आदतें जिनपर सिर्फ हक मेरे हो।


किसी दिन रोक दू सारी कायनात जब तू मेरे साथ हो,मेरी आग़ोश में हो तू बेखोफ ऐसी भी एक रात हो...
 जब बातें बेफ़िज़ूल लगे और साँसों में बात हो,सारी शिकायतों का हिसाब हो ऐसी भी एक मुलाकात हो|


इस सर्दी मुकम्ल हो हमारी वो तन्हा काटी ठंड की रातों वाली हसरते......के सुध बाकि न रहे,
इस कदर हो संगम तेरा मेरा के मुझमे खो जाये तू........खुद में तू बाकि न रहे.

 :- मनीष पुंडीर






तीन बहनों का एक भाई

                 मैं  तीन बहनों का एक भाई था और वो भी उनसे बड़ा, बचपन से ही उनकी परवाह करता रहा मां ने सिखाया था। मेरा बचपन थे वो अभी हाल ही...