Thursday, November 30, 2017

जिंदगी

#lub_u_जिंदगी
खुश हूँ अपनी हैसीयत से जो भी कमाया जिंदगी में सब सचा मिला, 
हिसाब हमेशा बराबर रखा कुछ के साथ पक गया कुछ को मैं कच्चा मिला।

न आँसुओ की गिनती की न हँसी का हिसाब रखा, 
जो भी मिला उसे गले लगया अपनी आँखों में हमेशा दूसरों का ख़्वाब रखा।

कुछ अपने है जिनकी चिंता है कुछ का मलाल है जो अपने न हो सके, 
कुछ दोस्त है जिनकी वजह से होटो पर हँसी है तलाश एक कंधे की जिसपे हम रो सके।

कइयो का कर्ज़दार हूं ....तो कई लोंगो पर कुछ लमहों का उधार बाकि है, 
कुछ तक़दीर से आज भी साथ है कुछ की तस्वीरों संग याद बाकि है।

मसरूफ़  ज़माने में दो-चार हमे भी पहचानते है सुकून होता है इस बात का, 
दुनियादारी सीखा गए कुछ वरना यहाँ तो रुतबा है औकात का।

पता नहीं कौन सी प्रतियोगिता है कामयाबी का हिसाब अब यहाँ तनख्वा से तेय होता है, 
जिसके पास थोड़ा है उसके पास सपने है जिसके पास जेयादा है वो सुकून को रोता हैं। 

दो वक़्त की रोटी के चक्कर में वक़्त भूल के काम कर रहे है कुछ भूख से तो कुछ ज़्यादा खा के मर रहे है, 
फिर भी #lub_u_जिंदगी क्योंकि तुझे बेहतर बनाने के लिए हम आज भी ख़ुद से लड़ रहे है।
#mani

Tuesday, November 21, 2017

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.

#तू 

क्या कहदु वो लब्ज़ नहीं जो तुझे बयां करदे,
आओ कभी मेहमाँ बन कर हमारे पास और खुद को हम पर फना  करदो |


तू हँसने का बहाना मेरा,
तू न सोचे क्या असर है मुझ पर तेरा।

तू जैसे सर्दी की धुप सा,
मेरी नज़र से तू एक बच्चा मासूस सा।


तेरे साथ लापरवाही भी सुकून देती है,
तू दूर ही सही पर तेरे लबो पर हस्सी अच्छी लगती है।


आरज़ू बहुत है पर बस कुछ पल अपने मेरे नाम करदो,
कभी मिलो फुर्सत से सुबह मिलो और साथ श्याम करदो।


मत सोच न मेरा न तेरा ये जमाना है,
एक मोका दे तू क्या है मेरे लिए ज़रा इत्मीनान से बताना है।
 
:-मनीष पुंडीर

Monday, November 13, 2017

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.


#बचपन _की_यादें



आज पूरी सैलरी भी वो सुकून नहीं देती,जो बचपन का वो एक रुपया देता था.....
आज ऑफिस-कम्पटीशन की ज़द्दोज़हद है वो भी क्या जमाना था जब में बेफिक्र रहता था.।

आज ऑफ्स के लिए अलार्म लगा के टाइम से उठता हुँ पर तब भी लेट हो जाता हूँ.
कभी क्रिकेट खलने के लिए 5 बजे उठ कर मै ही टीम इकठा किया करता था।

मिस करता हुँ उस ज़माने को जब हम पीछे बेंच पर बैठे किताबों में क्रिकेट खेला करते थे.…
और कॉपी के पीछे "FLAMES" उसके नाम के साथ लिख कर दिल को तस्सली दिया करते थे।

छोटी छोटी आँखों में बड़े बड़े सपने थे,जब विद्या रानी की कसम दी जाती थी.…
एग्जाम की आखरी रात की पढ़ाई और पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग के दिन सबकी शामत आती थी।

टीचरों के अलग अलग नाम रखा करते थे,गेम्स पीरियड के बाद लेट पहुँचा करते थे..
15 ऑगस्ट पर लड्डू की लाइन में दो-तीन बार लगना,मॉनिटर का ब्लैकबोर्ड पर नाम लिखने पर लड़ना।

on/off के स्विच को बीच में अटकाने की कोशिश किया करते थे,जब भीड़ में अकेले होने से डरते थे..
मेहमानों के जाते ही नमकीन के प्लेट पर झपटते थे और माँ मुझे ज़ायदा प्यार करती है इस बात पर बहनो से लड़ते थे।

खेल-खेल फोड़े मैंने बड़े कॉलोनी की खिड़कियों के कांच पर,अब कैंडी क्रश ही बचा है खेल के नाम पर आज.…
पहले दोस्त उसके पास प्यार का पैगाम ले जाता था,आज व्हट्सऐप और हाईक के स्टिकर्स में ही हो जाता है आधा रोमांस।

वो बात करते पकडे जाने पर क्लास के बाहर खड़ा रहना,वो काम पूरा ना होने पर कॉपी नहीं लाये कहना....
आज बर्गर पिज़्ज़ा भी वो मज़ा नहीं देता जो कभी लंच में साथ खाए पराठे और आचार का स्वाद आता था।

wednesday को वाइट शूज ना लाने पर प्रेयर बंक किया करते थे,जब मैग्गी और पार्ले-जी पसंद करते थे..
आज एक मैसेज पूरा पढ़ना भारी पड़ता है,तब लइब्रेरी में जाकर पढ़ी हुई "चंपक" भी अच्छी लगती थी।

दिवाली में बाथरूम में फूटा मेरा रखा पटाखा,क्लास में मस्ती करते वक़्त मेम से पड़ा चांटा....
हर शरारत पर मेरी t.c की धमकी देना,हर एग्जाम में मेरा लड़कियों से पेन लेना।


यादों की बारिश में में अपनी बचपन के पन्नों की कश्ती तैरा रहा हुँ,
तुम्हे भी शायद कुछ याद दिला रहा हुँ.

धन्यवाद
:-मनीष पुंडीर

Saturday, November 11, 2017

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.

सब_बिकता_है

 र चीज़ बिकती है आजकल हवा और पानी भी,
 पढ़ाई बिकती स्कूलों में और सपने बिकते मजबूरियों में।।


सब बिकता है यहाँ तरीकों से..
मैंने देखा है मिट्टी को बिकते तवा बनकर,
अब तो हवा भी बेचते लोग ग़ुब्बारे में भरकर।


जिंदा रहकर किसी ने न पूछा मरने के बाद हर एक शोक जताने आया है,
फ़ितरत बदलते देखा है मैंने जिनके लिए ज़हर थी कभी
आज उसी ने दारु को दवा बताया है।


मैंने दुनियां में शादी के नाम पर लड़का बेचते देखा है,
कामयाबी जुवे जैसी हो गई है
जीतेगा वहीँ जिसने ज्यादा पैसा फेका है।


काबलियत की कीमत कम हो चली है अब तो मार्केट में रेफरेंस चलता है,
 आग तो यूँही बदनाम है आजकल आदमी तो एक दूसरे का पैसा देख के जलता है।


अपनों की खुशियों के लिए हर कोई रोज़ ख़ुद को थोड़ा थोड़ा खर्ज़ कर रहा है,
कभी  बचपन तो कभी जवानी बेच के यूँही वक़्त गुजर रहा है।

:- मनीष पुंडीर

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प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.







सब_बिकता_है
       हर चीज़ बिकती है आजकल हवा और पानी भी, पढ़ाई बिकती स्कूलों में और सपने बिकते मजबूरियों में।।

  सब बिकता है यहाँ तरीकों से..मैंने देखा है मिट्टी को बिकते तवा बनकर, अब तो हवा भी बेचते लोग ग़ुब्बारे में भरकर।

जिंदा रहकर किसी ने न पूछा मरने के बाद हर एक शोक जताने आया है, फ़ितरत बदलते देखा है मैंने जिनके लिए ज़हर थी कभी आज उसी ने दारु को दवा बताया है।

मैंने दुनियां में शादी के नाम पर लड़का बेचते देखा है, कामयाबी जुवे जैसी हो गई है जीतेगा वहीँ जिसने ज्यादा पैसा फेका है।

काबलियत की कीमत कम हो चली है अब तो मार्केट में रेफरेंस चलता है, आग तो यूँही बदनाम है आजकल आदमी तो एक दूसरे का पैसा देख के जलता है।

अपनों की खुशियों के लिए हर कोई रोज़ ख़ुद को थोड़ा थोड़ा खर्ज़ कर रहा है, कभी  बचपन तो कभी जवानी बेच के यूँही वक़्त गुजर रहा है।

बात करने से ही बात बनेगी...

          लोग आजकल ख़ुद को दूसरों के सामने अपनी बात रखने में बड़ा असहज महसूस करते है। ये सुनने और अपनी बात तरीके से कहने की कला अब लोगों में...