Wednesday, November 19, 2014

तेरी मेरी हालत के नदी के दो किनारे हो

तू मै और हम

कुछ यु हो चली है अब तेरी मेरी हालत के नदी के दो किनारे हो.… 
हालातों से मजबूर जैसे जिन्हें मिलना कभी  है नहीं पर साथ हमेशा का है.…
उम्मीदों का पुल बना कर जुड़ने की कोशिश तो की बहुत थी पर.....................
कोशिशों में दम कम निकला,जब भी हम साथ हुवे वक़्त से तूफ़ान वाले हालत हुवे। 

:-मनीष पुंडीर 



Tuesday, November 11, 2014

"दिल तो बच्चा है जी"

यादों के बक्से से बचपन की बातें............. 
               

                           मारी  जिंदगी तीन शब्दों में बटी है "कल आज और कल" शयद ये समझने की जरूरत नहीं पड़ेगी,पर हमारा बिता हुवा कल गुजर जाने के बाद अहमियत का अहसास कराता है ठीक उसी तरह जब आपकी घर जाने वाली बस आपके सामने से निकले जाये और आप उसके पीछे भागते रह जाये और फिर खुद से कहे के 1 मिनट पहले निकलता तो शायद बस पकड़ लेता। ये बाते में इसलिए कह रहा हुँ क्युकी आज मै  अपनी यादों के बक्से से बचपन की यादों की चादर निकाल रहा हुँ..... हम सब अलग  अलग है चाहे रंग रूप की बात करे या सोच की पर एक बात में पुरे दावे से कह सकता हुँ हम सब जो बड़े हो गए अब बचपन को बड़ा याद करते है और कभी स्कूल ना जाने के बहाने करने वाले उसी स्कूल की जिंदगी को तरसते है। आओे आज बचपन की यादों को ताज़ा करे शायद थोड़ा ही सही कुछ पुराना आपको भी याद आ ही जायेगा  क्युकी "दिल तो बच्चा है जी",तो लिखता हुँ बचपन और स्कूल की मिलीजुली  यादों की बाते अपने ही अंदाज़ में.…………
        

 आज पूरी सैलरी भी वो सुकून नहीं देती,जो बचपन का वो एक रुपया देता था..... 
 आज ऑफिस-कम्पटीशन की ज़द्दोज़हद है वो भी क्या जमाना था जब में बेफिक्र रहता था.। 

आज ऑफ्स के लिए अलार्म लगा के टाइम से उठता हुँ पर तब भी लेट हो जाता हूँ.
कभी क्रिकेट खलने के लिए 5 बजे उठ कर मै ही टीम इकठा किया करता था। 

मिस करता हुँ उस ज़माने को जब हम पीछे बेंच पर बैठे किताबों में क्रिकेट खेला करते थे.… 
और कॉपी के पीछे "FLAMES" उसके नाम के साथ लिख कर दिल को तस्सली दिया करते थे।  

छोटी छोटी आँखों में बड़े बड़े सपने थे,जब विद्या रानी की कसम दी जाती थी.…
एग्जाम की आखरी रात की पढ़ाई और पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग के दिन सबकी शामत आती थी।

टीचरों के अलग अलग नाम रखा करते थे,गेम्स पीरियड के बाद लेट पहुँचा करते थे.. 
15  ऑगस्ट पर लड्डू की लाइन में दो-तीन बार लगना,मॉनिटर का ब्लैकबोर्ड पर नाम लिखने पर लड़ना।

on/off  के  स्विच को बीच में अटकाने की कोशिश किया करते थे,जब भीड़ में अकेले होने से डरते थे.. 
मेहमानों  के जाते ही नमकीन के प्लेट पर झपटते थे और माँ मुझे ज़ायदा प्यार करती है इस बात पर बहनो से लड़ते थे। 

खेल-खेल फोड़े मैंने बड़े कॉलोनी की खिड़कियों के कांच पर,अब कैंडी क्रश ही बचा है खेल के नाम पर आज.…
पहले दोस्त उसके पास प्यार का पैगाम ले जाता था,आज व्हट्सऐप और हाईक के स्टिकर्स में ही हो जाता है आधा रोमांस।

वो बात करते पकडे जाने पर क्लास के बाहर खड़ा रहना,वो काम पूरा ना होने पर कॉपी नहीं लाये कहना.... 
आज बर्गर पिज़्ज़ा भी वो मज़ा नहीं देता जो कभी लंच में साथ खाए पराठे और आचार का स्वाद  आता था। 

 wednesday को वाइट शूज ना लाने पर प्रेयर बंक किया करते थे,जब मैग्गी और पार्ले-जी पसंद करते थे.. 
आज एक मैसेज पूरा पढ़ना भारी पड़ता है,तब लइब्रेरी में जाकर पढ़ी  हुई "चंपक" भी अच्छी लगती थी। 

दिवाली में बाथरूम में फूटा मेरा रखा पटाखा,क्लास में मस्ती करते वक़्त मेम से पड़ा चांटा....
हर शरारत पर मेरी  t.c की धमकी देना,हर एग्जाम में मेरा लड़कियों से पेन लेना।

यादों की बारिश में में अपनी बचपन के पन्नों की कश्ती तैरा रहा हुँ,तुम्हे भी शायद कुछ याद दिला रहा हुँ.… 



                      तो यारों ये सब बातें अलग अलग जगह अलग अलग माहोल में सबने जी है मै जितने अच्छे तरीके से बता सकता था वो मैंने आप तक पहुँचा दिया। मेरी गुजरािश है के दिल को बच्चा ही रहने दो क्युकी आप खुद महसूस कर सकते है के जब आप बच्चे थे तब खुस थे या आज खुश है???,सुनने में अटपटा लगेगा पर मेरे  दोस्त वैसे भी कौन सा सुकून है जिंदगी में वक़्त की छड़ी की मार और क़िस्मत की कड़ाई इसी के भरोसे तो सपने पकाने में लगे हो। तो अगर आपके पास भी कुछ खट्टी-मीठी या अटपटी ही क्यों ना हो आप कॉमेंट में लिख सकते है। वो जो "कल आज और कल" वाली बात कही थी आने वाले कल के लिए आज भागता रहेगा तो इतना याद रखना के कल आएगा भी नहीं ये आपको नहीं पता और आज बीत गया तो.………………… कल इसी के लिए तरसोगे !!!!!!!!!!!!


धन्यवाद 
:-मनीष पुंडीर 


Sunday, November 9, 2014

दिल की बात........

कभी कभी दवा  नहीं वक़्त देने की जरूरत है.…

 
       सुरुवात एक किस्से से करूँगा मै श्याम के 4 बजे करीब मेरठ से दिल्ली के लिए बस ले रहा था तो ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठ गए कुछ देर बाद मेरी माँ की उम्र की करीब 35-40  के बीच की एक मोहतरमा मेरे बगल में आकर बैठ गयी,उनकी सफ़ेद लाल बाल और पीछे एक जुड़े में कसे हुवे थे मुँह पर उनके एक अजीब सी उदासी थी। उनकी खाली माँग भी शायद उस उदासी की वजह हो ऐसा मेरे दिमाग ने मुझसे कहा,फिर कंडक्टर आया वो भी दिल्ली तक ही जा रही थी।फिर हम लोग मोदीनगर ही पहुंचे थे तो शयद वो थकी हुई थी वो सो गयी और फिर कुछ देर बाद उनका सर मेरे कंधे पर था तभी जैसा की सब लोग वाकिफ है जो बस में सफर करते है एक अचानक मारा गया ब्रेक,उनकी नींद टूटी ब्रेक से उन्हें झटका लगा पर उन्होंने मेरा सहारा लेकर खुद को संभाल लिया। नींद टूटने के बाद वो एक-दो  बार मेरी तरफ देख के चुप हो गयी मुझे लगा शायद में कोई गलती कर रहा हुँ या उन्हें बैठने की जगह कम तो नहीं पड़ रही फिर मैंने ही पूछा आप ठीक है??? उन्होंने कहा हाँ फिर उन्होंने ये कुछ पल रुकर पूछा के कितना टाइम और लगेगा मैंने कहा अभी मोदीनगर पार हो गया है बस डेढ़ घंटे में पहुंच जायंगे अब वो मुझसे बातचीत करने में लग गयी।पहले तो कुछ आम चीज़ो पर हुई के घर में कौन कौन है क्या करते हो,शादी हुई या नहीं और दिल्ली क्यों जा रहे हो सब कुछ बताने के बाद मुझे भी मन हुवे के उनसे थोड़ा उनके बारे में जान सकु।उसके बाद मैंने उनसे पूछना सुरु किया तो जो उन्होंने मुझे बताया उन सब को एक साथ आप तक लिखता हुँ।
                          


                             उन्होंने बताया की उनके परिवार में वो उनके पति और दो बचे थे बड़ी लड़की और छोटा लड़का जब उनका लड़का तीन साल का था तो उनके पति नहीं रहे उसके बाद वो एक हॉस्पिटल में काम करती रही आज भी वो हॉस्पिटल से अपनी शिफ्ट पूरी करके दिल्ली जा रही थी और बच्चों को पालने से लेकर उनकी रोटी,कपड़ा,मकान और पढ़ाई जरूरी जरूरतों के इलवा उन्होंने कोई ख्वाब देखा बच्चों को अच्छी तरह पढ़ा दिया अब उनकी बड़ी बेटी HDFC बैंक में काम करती है और लड़का किसी अच्छी कंपनी में करता है आंटी को उस कंपनी का नाम याद नहीं था,तो मैंने उन्हें बीच में रोकते हुवे कहा के आंटी आप बहुत अच्छे हो और अच्छे लोगो के साथ अच्छा ही होता है फिर मैंने पूछा के दिल्ली क्यों जा रहे हो?? वो फिर उदास होकर बोली  की शादी है तो मैंने कहा के आप उदास मत हो आपको  अलग होने का दुःख है ना तो उन्होंने सर हिला कर कहा बेटा बात वो नहीं मुझे आज दिन में पता लगा के मेरी बेटी की शादी है ये सुनकर अजीब तो लगा पर उसके पीछे की बात जानी भी जरूरी थी फिर उन्होंने कहा वो पहले ये बोलती रही के मेरे दोस्त की शादी है आपको जरूर आना है फिर जब मैंने आने से मेन कर दिया तो बतया के उसकी खुद की शादी है। मैंने बात को संभालने की कोशिश की के आंटी जी आप लड़के से मिले हो उन्होंने कहा फ्रेंड बोल के एक दो बार मिल वाया है वो तो बहुत अछा है पर ऐसे कैसे शादी होती है ना किसी रिश्तेदारों को बुलया ना मुझे कुछ तयारी करने दी पता नहीं कैसे पैसे जोड़ना सुरु कर दिया था उसने कहती माँ अपने हमारे लिए बहुत किया अब आप आप आशीर्वाद देने आ जाना बस ये बोलते बोलते उनकी आँखों में आँसू थे जो भर नहीं आये अब वो खुशी के थे या गम के ये समझ नहीं आया?????.......... 

                     फिर मैंने उनसे उनके लड़के के बारे में पूछा तो उन्होंने गुस्से में कहा के वो नालायक किसी काम का नहीं है ये उनके हस्सी आई पर उस वक़्त वो जगह सही नहीं थी फिर मैंने उन्हें हलकी मुस्कान के साथ कहा ऐसा क्यों कह रहे हो आप तो फिर बोलने लगी जिसमे दर्द महसूस हो रहा था.। वो अपनी दीदी के घर के पास ही किसी लड़की के साथ रहता है दीदी से भी मिलने तब जाता है जब कुछ काम हो,पता नहीं क्या जादू किया है उस कुतिया ने मुझसे मिलने भी नहीं आता और जब में दिल्ली आती हुँ तो नहीं आता फिर कुछ देख खुद को संभाल कर उन्होंने कहा अरे में तो उन दोनों की शादी भी करवा दूंगी मुझे मिवाये तो.…अब यही दोनों है इनकी खुशी में ही मेरी खुशी इनसे लड़कर भी कहा जाउंगी,पर बेटा ऐसे शादी से पहले एक साथ रहना गलत बात है के नहीं ?? मैंने भी सहमति के लिए अपना सर हिलया।अब तो मेरी यही इच्छा है के ये दोनों खुस रहे मेरा क्या है में अपनी हॉस्पिटल की नौकरी से गुजर कर लुंगी तो मैंने कहा के अब वहाँ  नौकरी करने की क्या जरूरत है?? तो उन्होंने कहा के उनपर बोझ नहीं बना चाहती अब.……………ये सुनकर पता नहीं क्यों उनके लड़के पर अंदर से गुस्से जैसा कुछ भाव आया पर में कर भी क्या सकता था फिर जब दिल्ली पहुँचने वाले थे तो उनके ये शब्द मेरे ज़हन में आज भी ताज़ा है "कोई नहीं तू भी मेरा ही बेटा है वो एक नालायक  दिया है तो क्या तुझ जैसा अच्छा बच्चा भी तो है तू ना होता तो सफर इतना अच्छा ना जाता" मेरे दिल में एक सुकून और खुशि की मिलीजुली सी मुस्कान निकली। दिल्ली आ चूका था में पहले उतर के अपनी प्राकृतिक पीड़ा को शांत करने की जगह खोजने लगा,उसके बाद जब में जा रहा था तो वो आंटी एक लड़के को गले लगा कर रो रही थी उनके आँसू बता रहे थे के वो उनका नालायक बेटा है तभी मेरी आँखों से भी एक बून्द पानी निकला और होटों पर पाँव भर मुस्कान भी थी। 

             ये कहानी आपके लिए शायद उतनी खास ना हो या आपतक उस तरीके से ना पहुंचे जिस तरह मैंने वो सब जिया पर में इस कहानी में अपनी भूमिका से खुश हुँ क्युकी परेशानी सबके साथ है खुसी-दुःख की बैलेंस-शीट घटती-बढ़ती रहती है। बाकि हाँ इसके माध्यम से इतनी गुजारिश है के हम किसी को को उसके वर्तमान से नहीं पहचान सकते हर किसी की अपनी एक कहानी है अगर वो जाना चाहते हो तो वक़्त दो,हर किसी को किसी ऐसे की तलाश होती है के जिसे वो अपना दर्द दुःख बाँट सके अब वो आप पर है आप किसी की कहानी में क्या भूमिका निभाना चाहते है?????????????????????


धन्यवाद :-
मनीष पुंडीर 

Monday, November 3, 2014

मोलभाव

मोलभाव 

            जिंदगी से मोल भाव करते करते अब तो आदत कुछ इस कदर हो गयी है.. 
पाँव भर खुशिया लाकर दिल के रसोइघर में यादों की खिचड़ी पका लिया करते है। 
 तस्वीरों देख उन पलों  से रोशनी उधार लेकर मायूसी का अँधेरा तो भगा लेता हु..... 
अपने अरमानों को किसी तरह समझा कर सुला देता हुँ,पर खुद को समझाना भारी पड़ जाता है। 

अयिनो से बाते किया करता हु हाँ पहले भी  करता पहले तुझे क्या बोलूंगा कैसे बात करूंगा 
ये खुद में सीखता था अब तुझे कैसे भूलूंगा या पाउँगा भी या नहीं ये खुद को यकीं दिलाता हुँ। 
अब तो मेरे ख्याल भी मुझसे चिढ़ने लगे के हर बार फिर से वही सब.…  दिल का मर्ज़……




बहनें...

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.                ...