Wednesday, September 3, 2014

यादों के पन्नों से.....

   "मिशन इक़रार" दिल -डांस-दोस्ती।

.................................. मैं फिर कुछ पलो क लिए शांत हो गया फिर हिम्मत की और कहा की  मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी,उसने मेरी तरफ देखा और कहा हाहाहाहाहा अच्छा मजाक है अब घर चले। उसका ये कहना भी लाजमी था मै  आखरी बार कब सीरियस हुवा था मुझे खुद याद नहीं अब मरता क्या ना करता मैंने कहाँ  सच में यार मजाक नहीं उसका रास्ता रोका  "फट तो अंदर से पूरी रही थी" पर आज ना कहता तो फिर कभी कह भी नहीं पाता मैंने कहा यार शानू मजाक नहीं सच में मुझे खुद नहीं पता के में तुझे कबसे पसंद करता हुँ तेरे साथ सब अच्छा लगता है,तुझे नहीं दीखता क्या तुझसे मिलने किसी न किसी बहाने  से तेरे घर आता हुँ  यकीन नहीं तो पाण्डेय और दीपिका से भी पूछ ले!!!! सब कुछ एक रटु  तोते की तरह एक सांस में बोल गया.

                   फिर सारा डर  पता नहीं कहा गया दिल काफी हल्का महसूस कर रहा था,आँखे उसी की तरह थी.....दिल तो साला ऐसे धड़क रहा था जैसे किसी ने कनपट्टी पर बन्दुक रखी हो।उसने मेरी तरह देखा और कहा के मै  भी तुझे पंसद करती हुँ  पर एक दोस्त की तरह.…मैंने तुझे  लेकर ऐसा कभी नहीं सोचा यार तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है और तू बहुत अच्छा है तुझे मुझसे भी अच्छी लड़की मिल जयेगी। मुझे लड़कियों का ये पसंद हो पर "ऐस  ए  फ्रेंड" आज तक पले  नहीं पड़ा।
                 खेर अब आधी उम्मीद खो चूका था पर एक अंदर की बात बताता हुँ  जब प्यार का भुत  सवार  होता है तो तब इंसान सबसे जयदा आशावादी होता है,वो सब सुनकर थपड़  मार के भी चली जाती तब भी दिल साला ये सोचता "ना" अभी नहीं कहा!!!! पर यहाँ थपड़  नहीं पड़ा।मैंने भी कहाँ तुझसे अच्छी नहीं तू ही चाहीये,अच्छा बोला ना??? बॉलीवुड कही तो काम आया...वो समझ गयी के आज ये जवाब लेकर ही जयेगा उसने कहा अच्छा मेको सोचना का टाइम तो दे मैंने कहा कितना टाइम चाइये उसने कहा 1 महीना {बताओ यार परपोसल  न हुवा आयुर्वेद की दवा  का कोर्स हो गया रिजल्ट एक महीने के बाद पता चलेगा} फिर वाही आया बीच में आशावादी दिल चलो एक महीने और काट लेंगे वैसे भी आधा ऑगस्ट निकल ही गया है।  
               उसके अगले दिन स्कूल में जाते ही सारी कहानी पाण्डेय और दीपिका को बताई मन तो था पूरी क्लास में चिल्ला दु  पर वो जयदा हो जाता,एक चीज अच्छी थी शानू मुझे लेकर बदली नहीं थी सब पहले जैसा ही था। फिर हम सब ग्राउंड में चले गए प्रेयर के लिए प्रेयर में एक अनाउंसमेंट हुई के 5 सितम्बर को "टीचर्स डे" पर सभी हॉउस में ग्रुप डांस का कॉम्पिटिशन होगा अपने नाम अपने अपने हाउस हेड्स को श्याम तक दे देना। अब ये सब सुनके शानू ने अपना नाम डांस के लिए दे दिया अब जब भगु  की कृपा से हम एक ही  हाउस में थे तो हम भी कूद पड़े डांस के मैदान में अब नाम क्यों दिया इतना तो समझ ही लो......सबके नाम श्याम तक आ गए अब किस्मत भी फुल मजे लेने के मूड में थी मेरे इलवा मेरे हाउस में 9 लड़कियों के नाम थे। अब भइया करो या मरो  वाले हालतो में हमने कर के मरना  जयदा बेहतर समझा।
           सब हाउस लग गए प्रैक्टिस में मेरी ही क्लास से मेरा दोस्त मुरली और नेहा भी मेरे कॉम्पिटिशन में था डांस भी अच्छा करते  थे,उनकी प्रैक्टिस शानू ने देखी शायद वो बंटी -बबली के नच  बलिए गने पर डांस कर रहे थे। यहाँ दो धारी तलवार लटक रही थी एक शानू को इम्प्रेस करना था दूसरा हमारी हाउस हेड "सिम्मी मेम" उनका एक ही कहना था 100 % एफर्ट लगा दो जीत ही चाहिए,यहाँ फार्मेशन अलग थी मै  और निशा (मेरी डांस पार्टनर) फ्रंट में थे और बाकि 8 लड़कियाँ  पीछे शानू भी पीछे ही थी हमारा सांग था "सुनो गौर से दुनिया वालो,चाहे जितना जोर लगा  लो ... वैसे में निशा को सब बता चूका था अपने और शानू के बारे में अब डांस पार्टनर थी बताना तो बनता थ। शानू उनकी प्रैक्टिस देख कर आई तो मुह लटका था मैंने कहा क्या  हुवा उसने कहा  हम नहीं जीतने वाले वो लोग बहुत अच्छा कर रहे हैं। 
        अब जिसके लिए इतना सब कर दिया उसका मुँह लटका कैसे देख लेते उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा अब तेरे लिए जीतना ही पड़ेगा उसने कहा नहीं जीत सकते हम भी पुरे फिल्मी थे ऊपर से राजपूत कहा देख जीतूंगा तो तुझे  महीने भर की जगह मेरा जवाब डांस रिजल्ट के तुरंत बाद देना होगा इतने में पीछे से निशा  की आवाज आई और हम सबको पार्टी भी और अब प्रैक्टिस करलो वरना जीतोगे कैसे?? सब हँस रहे थे पर शानू ने कुछ नहीं कहा फिर कुछ सोचा और कहा ठीक है जैसे ही उसे यकीन हो के हम जीत ही नहीं सकते। ............... टू  बी  कॉन्टिनुएड
………… आगे की कहानी पढ़ने के लिए थोड़ा सब्र रखे तब तक के लिए इस पर कॉमेंट करें 
:मनीष पुंडीर 

















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