Friday, December 5, 2014

जिंदगी जिंदादिली का नाम है.…

जिंदगी बातें और यादें ……
                ये जिंदगी सांसे एक दिन खत्म हो जानी है आखिर में सिर्फ बातें और यादें ही रहती है,जैसे ये धरती गोल है जीवन का चक्र भी गोल घूमता है। कल को जो कहानियाँ माँ तुम्हे सुनाती थी आज वही तुम अपने बच्चों को बताओगे,कल तक पापा की बातो का डांट का बुरा लगता था आज खुद के बच्चे हुवे तो जाना के वो सही थे।कल की गलतियाँ आज का तज़ुर्बा बनेगी,चीज़ें खो भी जएंगी पर यादों हमेशा साथ रहेंगी।
             मरने से पहले ढंग से जी लेना क्यूंकि जिंदगी जीने के दो ही तरीके है पहला "पूरी जिंदगी भर एक ही काम करते करते गुज़ार लेना और दूसरा एक ही जिंदगी में सब कुछ कर जाना" ये उसी तरह है जैसे बचपन में रेत के टीले बनाते तो थे पर वो कब तक टिका रहेगा या कब कौन सी लहरें उसे तोड़ जाये इसका पता नहीं चलता था इसलिए जीवन में हर चीज़ अनुभव करो.…क्युकी अगर नहीं की तो जब कभी यादों के साथ बैठोगे तो बस खुद से इतना ही कह पाओगे काश.…
             दुनिया में आने की वजह और जाने का समय न कोई जान पाया है और जान भी गया तो फ़िक्र ही करेगा,हम सब के पास एक ही लिमिटेड एडिशन लाइफ है तो क्यों इसे फ़िज़ूल की चीज़ो पर खर्च करे। बहुत कुछ है यहाँ हर दिन कुछ सिखने को नयी चीज़े करने को गिरने को फिर सम्भलने को,कोई छिन नहीं सकता तुमसे तुम्हारी खुशिया जो है पर रोना भी तुमको ही पड़ेगा अपने हिस्से के आँसू भी। 
             यहाँ अच्छा-बुरा सब सोच का फर्क है क्यूंकि तुम्हारे बीमार पड़ने से डॉक्टर का भला है और तुम्हारे जीतने से किसी की हार हर चीज़ आपस में एक-दूसरे से जुडी है,तो बस ये सोच के जियो के तुम इस खूबसूरत दुनिया को और अच्छी बनाने आये हो।विश्वास से बड़ी कोई ताकत नहीं है कभी मन में किसी चीज़ को लेकर कोई संकोच हो,तो वो चीज़ कर लेना क्युकी न करके पछताने से अच्छा है कर के पछताना क्यूंकि जो सोचा वो मिल गया तो ठीक वरना असफल होने से एक और अच्छी चीज़ मिलेगी तज़ुर्बा(अनुभव) जो की तुम्हे अच्छे-बुरे में फ़र्क करना सिखयेगा। 
                  हर किसी की अपनी मुश्किलें होंगी किसी को पहले ही बुरा मत समझ लेना क्युकी गलती तुम भी करते हो,तो दुसरो को उतने की मोके देना जितना खुद के लिए उमीद करते हो।सब तुम्हारे जैसे ही यहाँ कोई भी अलग नहीं है भूख सबको लगती है,नींद सबको आती है धुप-छाओ सबके लिए एक ही है तो जितना ख्याल खुद की खुशियों का रखते हो दूसरों की खुशियों के लिए भी उतना ही प्रयास करना,खुल के हँसना तन से बड़ा होना मन से नहीं क्युकी जिस दिन ये बचपना गया वो मासूमियत गयी उस दिन समझ लेना जिंदगी बौझ लगने लगेगी।
                      यहाँ अच्छे दिन भी आयंगे और बुरे भी कभी भूखे पेट भी सोना पड़ेगा कभी हस्ते हस्ते भी रोना पड़ेगा जीवन के रंगमंच पर अपना किरदार आपको ही निभाना है तो अच्छे दिनों पर घमंड मत करना और बुरे दिनों में हताश ना होना,सबपर भरोसा करना सबको प्यार करना क्यूंकि यहाँ सबको प्यार की बहुत जरूरत है अकेले रहकर सिर्फ स्कूल के इन्तेहाँ दे सकते हो अगर जिंदगी के पेपर में अवल आना है तो सबका साथ लेना ही पड़ेगा।अकेले यादें नहीं बनती क्या फयदा तेरी खुशी का अगर साथ बांटने के लिए एक भी यार नहीं,डॉलर कमा भी लिया तो क्या जब घरवालों संग एक भी त्यौहार नहीं??? 
                लोग मिलेंगे साथ चलेंगे कोई पीछे छूट जाये तो उसका हाथ थामना उसे अकेला मत छोड़ना क्यूंकि याद रखना तुम्हारे अकेले वक़्त पर किसने तुम्हारा साथ दिया और ये भी मत भूलना के कभी तुम भी पीछे छूट सकते हो,तो आखिर में इतना ही कहना चाहूंगा के जीवन में हर अहसास को महसूस करना ताकि आखिर में काश कहने की नौबत ना आये.…

:-मनीष पुंडीर


inspired by-

KHAT ||EmotionalFulls


             

       

Wednesday, November 19, 2014

तेरी मेरी हालत के नदी के दो किनारे हो

तू मै और हम

कुछ यु हो चली है अब तेरी मेरी हालत के नदी के दो किनारे हो.… 
हालातों से मजबूर जैसे जिन्हें मिलना कभी  है नहीं पर साथ हमेशा का है.…
उम्मीदों का पुल बना कर जुड़ने की कोशिश तो की बहुत थी पर.....................
कोशिशों में दम कम निकला,जब भी हम साथ हुवे वक़्त से तूफ़ान वाले हालत हुवे। 

:-मनीष पुंडीर 



Tuesday, November 11, 2014

"दिल तो बच्चा है जी"

यादों के बक्से से बचपन की बातें............. 
               

                           मारी  जिंदगी तीन शब्दों में बटी है "कल आज और कल" शयद ये समझने की जरूरत नहीं पड़ेगी,पर हमारा बिता हुवा कल गुजर जाने के बाद अहमियत का अहसास कराता है ठीक उसी तरह जब आपकी घर जाने वाली बस आपके सामने से निकले जाये और आप उसके पीछे भागते रह जाये और फिर खुद से कहे के 1 मिनट पहले निकलता तो शायद बस पकड़ लेता। ये बाते में इसलिए कह रहा हुँ क्युकी आज मै  अपनी यादों के बक्से से बचपन की यादों की चादर निकाल रहा हुँ..... हम सब अलग  अलग है चाहे रंग रूप की बात करे या सोच की पर एक बात में पुरे दावे से कह सकता हुँ हम सब जो बड़े हो गए अब बचपन को बड़ा याद करते है और कभी स्कूल ना जाने के बहाने करने वाले उसी स्कूल की जिंदगी को तरसते है। आओे आज बचपन की यादों को ताज़ा करे शायद थोड़ा ही सही कुछ पुराना आपको भी याद आ ही जायेगा  क्युकी "दिल तो बच्चा है जी",तो लिखता हुँ बचपन और स्कूल की मिलीजुली  यादों की बाते अपने ही अंदाज़ में.…………
        

 आज पूरी सैलरी भी वो सुकून नहीं देती,जो बचपन का वो एक रुपया देता था..... 
 आज ऑफिस-कम्पटीशन की ज़द्दोज़हद है वो भी क्या जमाना था जब में बेफिक्र रहता था.। 

आज ऑफ्स के लिए अलार्म लगा के टाइम से उठता हुँ पर तब भी लेट हो जाता हूँ.
कभी क्रिकेट खलने के लिए 5 बजे उठ कर मै ही टीम इकठा किया करता था। 

मिस करता हुँ उस ज़माने को जब हम पीछे बेंच पर बैठे किताबों में क्रिकेट खेला करते थे.… 
और कॉपी के पीछे "FLAMES" उसके नाम के साथ लिख कर दिल को तस्सली दिया करते थे।  

छोटी छोटी आँखों में बड़े बड़े सपने थे,जब विद्या रानी की कसम दी जाती थी.…
एग्जाम की आखरी रात की पढ़ाई और पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग के दिन सबकी शामत आती थी।

टीचरों के अलग अलग नाम रखा करते थे,गेम्स पीरियड के बाद लेट पहुँचा करते थे.. 
15  ऑगस्ट पर लड्डू की लाइन में दो-तीन बार लगना,मॉनिटर का ब्लैकबोर्ड पर नाम लिखने पर लड़ना।

on/off  के  स्विच को बीच में अटकाने की कोशिश किया करते थे,जब भीड़ में अकेले होने से डरते थे.. 
मेहमानों  के जाते ही नमकीन के प्लेट पर झपटते थे और माँ मुझे ज़ायदा प्यार करती है इस बात पर बहनो से लड़ते थे। 

खेल-खेल फोड़े मैंने बड़े कॉलोनी की खिड़कियों के कांच पर,अब कैंडी क्रश ही बचा है खेल के नाम पर आज.…
पहले दोस्त उसके पास प्यार का पैगाम ले जाता था,आज व्हट्सऐप और हाईक के स्टिकर्स में ही हो जाता है आधा रोमांस।

वो बात करते पकडे जाने पर क्लास के बाहर खड़ा रहना,वो काम पूरा ना होने पर कॉपी नहीं लाये कहना.... 
आज बर्गर पिज़्ज़ा भी वो मज़ा नहीं देता जो कभी लंच में साथ खाए पराठे और आचार का स्वाद  आता था। 

 wednesday को वाइट शूज ना लाने पर प्रेयर बंक किया करते थे,जब मैग्गी और पार्ले-जी पसंद करते थे.. 
आज एक मैसेज पूरा पढ़ना भारी पड़ता है,तब लइब्रेरी में जाकर पढ़ी  हुई "चंपक" भी अच्छी लगती थी। 

दिवाली में बाथरूम में फूटा मेरा रखा पटाखा,क्लास में मस्ती करते वक़्त मेम से पड़ा चांटा....
हर शरारत पर मेरी  t.c की धमकी देना,हर एग्जाम में मेरा लड़कियों से पेन लेना।

यादों की बारिश में में अपनी बचपन के पन्नों की कश्ती तैरा रहा हुँ,तुम्हे भी शायद कुछ याद दिला रहा हुँ.… 



                      तो यारों ये सब बातें अलग अलग जगह अलग अलग माहोल में सबने जी है मै जितने अच्छे तरीके से बता सकता था वो मैंने आप तक पहुँचा दिया। मेरी गुजरािश है के दिल को बच्चा ही रहने दो क्युकी आप खुद महसूस कर सकते है के जब आप बच्चे थे तब खुस थे या आज खुश है???,सुनने में अटपटा लगेगा पर मेरे  दोस्त वैसे भी कौन सा सुकून है जिंदगी में वक़्त की छड़ी की मार और क़िस्मत की कड़ाई इसी के भरोसे तो सपने पकाने में लगे हो। तो अगर आपके पास भी कुछ खट्टी-मीठी या अटपटी ही क्यों ना हो आप कॉमेंट में लिख सकते है। वो जो "कल आज और कल" वाली बात कही थी आने वाले कल के लिए आज भागता रहेगा तो इतना याद रखना के कल आएगा भी नहीं ये आपको नहीं पता और आज बीत गया तो.………………… कल इसी के लिए तरसोगे !!!!!!!!!!!!


धन्यवाद 
:-मनीष पुंडीर 


Sunday, November 9, 2014

दिल की बात........

कभी कभी दवा  नहीं वक़्त देने की जरूरत है.…

 
       सुरुवात एक किस्से से करूँगा मै श्याम के 4 बजे करीब मेरठ से दिल्ली के लिए बस ले रहा था तो ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठ गए कुछ देर बाद मेरी माँ की उम्र की करीब 35-40  के बीच की एक मोहतरमा मेरे बगल में आकर बैठ गयी,उनकी सफ़ेद लाल बाल और पीछे एक जुड़े में कसे हुवे थे मुँह पर उनके एक अजीब सी उदासी थी। उनकी खाली माँग भी शायद उस उदासी की वजह हो ऐसा मेरे दिमाग ने मुझसे कहा,फिर कंडक्टर आया वो भी दिल्ली तक ही जा रही थी।फिर हम लोग मोदीनगर ही पहुंचे थे तो शयद वो थकी हुई थी वो सो गयी और फिर कुछ देर बाद उनका सर मेरे कंधे पर था तभी जैसा की सब लोग वाकिफ है जो बस में सफर करते है एक अचानक मारा गया ब्रेक,उनकी नींद टूटी ब्रेक से उन्हें झटका लगा पर उन्होंने मेरा सहारा लेकर खुद को संभाल लिया। नींद टूटने के बाद वो एक-दो  बार मेरी तरफ देख के चुप हो गयी मुझे लगा शायद में कोई गलती कर रहा हुँ या उन्हें बैठने की जगह कम तो नहीं पड़ रही फिर मैंने ही पूछा आप ठीक है??? उन्होंने कहा हाँ फिर उन्होंने ये कुछ पल रुकर पूछा के कितना टाइम और लगेगा मैंने कहा अभी मोदीनगर पार हो गया है बस डेढ़ घंटे में पहुंच जायंगे अब वो मुझसे बातचीत करने में लग गयी।पहले तो कुछ आम चीज़ो पर हुई के घर में कौन कौन है क्या करते हो,शादी हुई या नहीं और दिल्ली क्यों जा रहे हो सब कुछ बताने के बाद मुझे भी मन हुवे के उनसे थोड़ा उनके बारे में जान सकु।उसके बाद मैंने उनसे पूछना सुरु किया तो जो उन्होंने मुझे बताया उन सब को एक साथ आप तक लिखता हुँ।
                          


                             उन्होंने बताया की उनके परिवार में वो उनके पति और दो बचे थे बड़ी लड़की और छोटा लड़का जब उनका लड़का तीन साल का था तो उनके पति नहीं रहे उसके बाद वो एक हॉस्पिटल में काम करती रही आज भी वो हॉस्पिटल से अपनी शिफ्ट पूरी करके दिल्ली जा रही थी और बच्चों को पालने से लेकर उनकी रोटी,कपड़ा,मकान और पढ़ाई जरूरी जरूरतों के इलवा उन्होंने कोई ख्वाब देखा बच्चों को अच्छी तरह पढ़ा दिया अब उनकी बड़ी बेटी HDFC बैंक में काम करती है और लड़का किसी अच्छी कंपनी में करता है आंटी को उस कंपनी का नाम याद नहीं था,तो मैंने उन्हें बीच में रोकते हुवे कहा के आंटी आप बहुत अच्छे हो और अच्छे लोगो के साथ अच्छा ही होता है फिर मैंने पूछा के दिल्ली क्यों जा रहे हो?? वो फिर उदास होकर बोली  की शादी है तो मैंने कहा के आप उदास मत हो आपको  अलग होने का दुःख है ना तो उन्होंने सर हिला कर कहा बेटा बात वो नहीं मुझे आज दिन में पता लगा के मेरी बेटी की शादी है ये सुनकर अजीब तो लगा पर उसके पीछे की बात जानी भी जरूरी थी फिर उन्होंने कहा वो पहले ये बोलती रही के मेरे दोस्त की शादी है आपको जरूर आना है फिर जब मैंने आने से मेन कर दिया तो बतया के उसकी खुद की शादी है। मैंने बात को संभालने की कोशिश की के आंटी जी आप लड़के से मिले हो उन्होंने कहा फ्रेंड बोल के एक दो बार मिल वाया है वो तो बहुत अछा है पर ऐसे कैसे शादी होती है ना किसी रिश्तेदारों को बुलया ना मुझे कुछ तयारी करने दी पता नहीं कैसे पैसे जोड़ना सुरु कर दिया था उसने कहती माँ अपने हमारे लिए बहुत किया अब आप आप आशीर्वाद देने आ जाना बस ये बोलते बोलते उनकी आँखों में आँसू थे जो भर नहीं आये अब वो खुशी के थे या गम के ये समझ नहीं आया?????.......... 

                     फिर मैंने उनसे उनके लड़के के बारे में पूछा तो उन्होंने गुस्से में कहा के वो नालायक किसी काम का नहीं है ये उनके हस्सी आई पर उस वक़्त वो जगह सही नहीं थी फिर मैंने उन्हें हलकी मुस्कान के साथ कहा ऐसा क्यों कह रहे हो आप तो फिर बोलने लगी जिसमे दर्द महसूस हो रहा था.। वो अपनी दीदी के घर के पास ही किसी लड़की के साथ रहता है दीदी से भी मिलने तब जाता है जब कुछ काम हो,पता नहीं क्या जादू किया है उस कुतिया ने मुझसे मिलने भी नहीं आता और जब में दिल्ली आती हुँ तो नहीं आता फिर कुछ देख खुद को संभाल कर उन्होंने कहा अरे में तो उन दोनों की शादी भी करवा दूंगी मुझे मिवाये तो.…अब यही दोनों है इनकी खुशी में ही मेरी खुशी इनसे लड़कर भी कहा जाउंगी,पर बेटा ऐसे शादी से पहले एक साथ रहना गलत बात है के नहीं ?? मैंने भी सहमति के लिए अपना सर हिलया।अब तो मेरी यही इच्छा है के ये दोनों खुस रहे मेरा क्या है में अपनी हॉस्पिटल की नौकरी से गुजर कर लुंगी तो मैंने कहा के अब वहाँ  नौकरी करने की क्या जरूरत है?? तो उन्होंने कहा के उनपर बोझ नहीं बना चाहती अब.……………ये सुनकर पता नहीं क्यों उनके लड़के पर अंदर से गुस्से जैसा कुछ भाव आया पर में कर भी क्या सकता था फिर जब दिल्ली पहुँचने वाले थे तो उनके ये शब्द मेरे ज़हन में आज भी ताज़ा है "कोई नहीं तू भी मेरा ही बेटा है वो एक नालायक  दिया है तो क्या तुझ जैसा अच्छा बच्चा भी तो है तू ना होता तो सफर इतना अच्छा ना जाता" मेरे दिल में एक सुकून और खुशि की मिलीजुली सी मुस्कान निकली। दिल्ली आ चूका था में पहले उतर के अपनी प्राकृतिक पीड़ा को शांत करने की जगह खोजने लगा,उसके बाद जब में जा रहा था तो वो आंटी एक लड़के को गले लगा कर रो रही थी उनके आँसू बता रहे थे के वो उनका नालायक बेटा है तभी मेरी आँखों से भी एक बून्द पानी निकला और होटों पर पाँव भर मुस्कान भी थी। 

             ये कहानी आपके लिए शायद उतनी खास ना हो या आपतक उस तरीके से ना पहुंचे जिस तरह मैंने वो सब जिया पर में इस कहानी में अपनी भूमिका से खुश हुँ क्युकी परेशानी सबके साथ है खुसी-दुःख की बैलेंस-शीट घटती-बढ़ती रहती है। बाकि हाँ इसके माध्यम से इतनी गुजारिश है के हम किसी को को उसके वर्तमान से नहीं पहचान सकते हर किसी की अपनी एक कहानी है अगर वो जाना चाहते हो तो वक़्त दो,हर किसी को किसी ऐसे की तलाश होती है के जिसे वो अपना दर्द दुःख बाँट सके अब वो आप पर है आप किसी की कहानी में क्या भूमिका निभाना चाहते है?????????????????????


धन्यवाद :-
मनीष पुंडीर 

Monday, November 3, 2014

मोलभाव

मोलभाव 

            जिंदगी से मोल भाव करते करते अब तो आदत कुछ इस कदर हो गयी है.. 
पाँव भर खुशिया लाकर दिल के रसोइघर में यादों की खिचड़ी पका लिया करते है। 
 तस्वीरों देख उन पलों  से रोशनी उधार लेकर मायूसी का अँधेरा तो भगा लेता हु..... 
अपने अरमानों को किसी तरह समझा कर सुला देता हुँ,पर खुद को समझाना भारी पड़ जाता है। 

अयिनो से बाते किया करता हु हाँ पहले भी  करता पहले तुझे क्या बोलूंगा कैसे बात करूंगा 
ये खुद में सीखता था अब तुझे कैसे भूलूंगा या पाउँगा भी या नहीं ये खुद को यकीं दिलाता हुँ। 
अब तो मेरे ख्याल भी मुझसे चिढ़ने लगे के हर बार फिर से वही सब.…  दिल का मर्ज़……




Monday, October 20, 2014

सही या गलत ???

प्यार के आभाव में .…… 

         जो कहानी अधूरी रह गयी थी उसके बारे में इतना ही कह पाउँगा के जिसकी वो कहानी थी वो नहीं चाहता के वो दुनिया की नजरों में किसी आलोचना का विषय बने,तो उसकी भावनाओँ की कदर करते हुवे में आपको कहानी लिखने का मकसद बताता हुँ।किसी भी इंसान को उसके वर्तमान के हालातों से तोलना सही नहीं है क्युकी जरूरी नहीं जो बचपन हालत या परवरिश आपको मिली है हो वो सबके साथ हो सबकी अपनी एक कहानी है अगर किसी के खास होना चाहते हो तो कुसे समझो उसे सुनो और उसको हिम्मत और साथ दो।
             
                          ये कहानी मेरे सबसे अच्छे दोस्त की है पर वो नहीं चाहता के में इसे आगे लिखू तो उसी की खुसी के लिए सिर्फ इतना समझाना चाहता था के इंसान के जीवन में आगे प्यार अपनेपन और स्नेह का आभाव हो तभी कोई व्यक्ति अपनेआप को अकेला महसूस करता है हमें सिर्फ उनका थोड़ा ख्याल रखना है और उन्हें भी यही चाइये।सिर्फ रोटी कपड़ा और मकान  नहीं थोड़ा अपनों का प्यार उनके होने का अहसास भी  जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है,तो सबको खुशिया बांटो लोगों के मन को समझो क्युकी कभी कभी एक चॉकलेट केक वो मुस्कान ला पाता जो एक हाथ से बना ग्रीटिंग कार्ड कमाल कर जाता है। 
                 
                             इंसान की फितरत में गलती करना है तो क्या आप एक गलती के लिए उन्हें खुद से उन्हें खुद से दूर कर लेंगे जाओ उनके पास जिन्हे आप  अपने अहंकार कारण पीछे छोड़ आये है,सोचते तो है उनके बारे में पर खुद के अहंकार से हार कर बस दो हिचकियों में ही वो याद तब्दील होकर रह जाये।कभी जेहन में उठा कर देखना वक़्त के दीवान के अंदर कितनी पुरानी यादों की चादरें पड़ीं है जरा प्यार की धुप दिखाओ उनको और थोड़ी अहम की धूल झाड़ो और सजाओ दिल की दीवारो को खुशियों  आखिर खुशियों का समय है दिवाली भी पास है। 

इसी सिलसिले में कुछ अपने ही अंदाज़ में कहने की कोशिश करूंगा समझ आये तो ठीक वरना समझ लेना अच्छा टाइमपास हो गया। 


"खुद ही खुद में कितना अकड़ेगा तू,जो हो गया वो गुजरा वक़्त था.…… 
उस गलती को अपने दिल के ज़ख्मो पर कितना रगडेगा तू????

तू खुदा नहीं जो सब बदल सके,पर तू इंसान है खुद को बदल सकता है.. 
छोटा मत समझ बस समझ का फर्क है,अँधेरा मिटाने की औकात एक दिया भी रखता है। 

अपने अहम के वहम में कब तक यूँ अँधा बना फिरेगा जन-बुझ कर????
छोटा नहीं हो जयेगा अगर गया तू उसके पास दोस्ती का हाथ बढ़ाने सब भूल कर। 
 
कब-तक ये सोच के काम करेगा के इसमें मेरा फायदा क्या?? जिंदगी व्यापार नहीं है
कभी सूरज ने धुप के लिए पैसे मांगे,कभी पेड़ ने फल से किराया लिया?
कभी फूलों ने कहा के हमारी खुश्बू के लिए पहले पैसे दो,प्रकृति से ही सिख लो यार.… 

हर काम लोभ से करोगे तो एक दिन खुद की खुशी के लिए भी पहले फयदा खोजोगे।"

:-मनीष पुंडीर 








Tuesday, October 14, 2014

बारिश_यादे_अलफ़ाज़ 


आज आते हुवे रस्ते में बूंदों को गिरते देखा,फिर क्या था यादों ने महफ़िल सी सज़ा ली.…
मानों जमी रूठी हो आसमान से उसी को मानते-मानते झलक आये हो आँसू उसके।

बारिश आती है बूंदों में गाती है हम सुन कर आँखे मूंद लेते है और ख्यालो में भीगते है.…
बस इस बात से अंदाज़ा लगा मेरे सब्र का कुछ ऐसे वक़्त से गुज़र रहे है हम,जो गुज़रता ही नहीं।

हकिम ने जब नब्ज़ देखी मेरी कुछ देर रुककर दुरुस्त बता दिया,फिर जाने क्या जेहन में  आया????
पास आकर मेरे मेरी आँखों में झाका और हँस कर मुझे इश्क़ का बीमार बता दिया।

जिंदगी मेरी मुझसे ही लड़ती है फ़िक्र भी करती है और मशवरा भी हर बार एक ही देती है..... 
हर बार हारता है है फिर भी लड़ रहा है,उस एक इंसान के लिए तू मुझे क्यों बर्बाद कर रहा है। 

सिगरेट का कश अब मज़ा नहीं देता,जाम नशा तो करता है पर यादों से जुदा नहीं करता…
बस अब आलम ये है यादों की जायदाद जो कमा रखी है उन्हें ही खर्च कर गुज़ारा चला रहा हुँ। 

मेरी बेफिक्री पर हँसने वालों तुम भी खुश रहना,कोई तुमसे करे मेरा ज़िक्र कभी तो.………
बस तुम कह देना "पागल था हँसता-रोता रहता था,पूछने पर दोनों की वजह एक ही बताता था। 

मनीष पुंडीर 

Saturday, October 11, 2014

अन्धविश्वास

वहम की कोई दवा नहीं होती।

                     न्धविश्वास ये शब्द आपके लिए नया नहीं है,क्युकी भारत में ये उतना ही जाना और माना जाता है जैसे के भगवान को लोग पूजते है।कहने को हम चाँद पर पहुँच  गए और तो और अब तो मंगल पर भी हम ही सबसे पहले जा घुसे पर ज़रा एक काली बिल्ली सामने से निकल जाये मजाल जो कदम भी आगे बढ़ जाये, मन दुखता है जब सुनता हुँ के इस अन्धविश्वास के अँधेरे के तले कितने पाखंडी अपना धंधा चला रहे है।ये हमारे यहाँ सब चीज़ में जुड़ा है नाख़ून काटने से लेकर कौवे के काव काव करने तक,कही न कही पढ़ लिख कर सिर्फ डिग्री हासिल करना ही सब कुछ नहीं होता आपको अपने आसपास फैली निरक्षरता को दूर करने की कोशिश भी करनी चाइये।
                                     बचपन से ही सिखाया जाता है गुरुवार को बाल नहीं कटाना शनिवार को तेल दान नहीं करना मंगल के दिन अंडा-मांस नहीं खाना अगर धर्म की बात की जाये तो हर दिन हर वार किसी न किसी भगवान को समर्पित है तो इसका मतलब निकाल तो आप एक देव को दूसरे देवों की तुलना मेँ जयादा अहमियत दे रहे है फिर तो????? आगे अन्धविश्वास के हिसाब से चलो तो आपके नाख़ून रात के समय काटने से दुर्भाग्य आता है,अगर आपके घर के बाहर कोई कौवाँ आवाज़ कर रहा है तो आपके घर में कोई मेहमान आने वाला है।बिल्ली का रोना ग़लत माना जाता है अरे जनाब आप इंसान हो तो क्या रोने का परमिट सिर्फ आपके पास है??? कोई मुझे ये बात भी जोड़ के बता दे के कड़ाई में खाने से आपकी बारात के दिन बारिश कैसे आ सकती है???? किसी के छींकने से  किसी का काम कैसे बन और बिगड़ सकता है ??? बहुत से सवाल है जो पहले से हम पर थोपे गए है पर इनकी सुरुवात कहाँ से हुई और कैसे ये सार्थक साबित होते है ये ज़वाब नहीं मिलता।
                                      मुझे हमारे इस अन्धविश्वास के सिद्धांत को समझने में थोड़ी दिक्कत इसलिए आती है क्युकी मैंने ये हर वर्ग हर जाती के लोगों में देखा है पर तर्क के नाम पर सब असफल नज़र आते है,आप किसी की कुंडली का दोष मिटने के लिए उसकी शादी पहले पेड़ या जानवरों से करवाते हो और अगर उसी समाज में कोई आदमी पहली अर्धांग्नी होते हुवे दूसरे विवाह को गलत मानते हो तो दोनों बातें  ही एक दूसरे के उलट नज़र आती है।टूटे शीशे में आप खुद को नहीं देख सकते अगर कोई अँधा है उसके लिए तो ये लागु ही  नहीं होता तो क्या उसके किस्मत के मायने हमसे अलग हो गए,एक तोता अगर आपका भविष्य बताने में माहिर है तो सब घर में तोते ही पाल लो।किसी की हाथों की रेखा देख अगर उसकी सफलता के बारे में बतया जा सकता है तो जिनके हाथ नहीं वो तो कभी सफल हो ही नहीं पायंगे,अगर नींबू -मिर्ची के भरोसे बुरी नज़र से बच सकते है तो सब गोदाम खोल लेते,जो अमीर है उसकी उंगलियों में हीरा-पन्ना जैसे रत्न होते है और गरीब के हाथ रोटी को तरसते है।


                              कुछ दिन पहले आये थे एक बाबा जो परेशानियाँ समोसों की चटनी और कपड़ो के रंग बदलके दूर करने का दावा  करते थे,यार इतना तो बचपन में माँ-बाप भी नहीं फुसलाते थे जितना हम अन्धविश्वास को लेकर इन जैसे बाबाओं के शिकार  होते है।मुझे कुछ बदलना या कुछ सीखना नहीं है  आप लोगो को बस एक प्रयास है इस भेड़ चाल के समाज़ को बेहतर बनाने का,और पहले वो पहले वो के चकर  में कभी भी कुछ नहीं बदला खुद से शुरू  करो और याद रखो छोटी-छोटी चीज़े मिलकर ही कुछ बड़ा कर पाओगे।बाकि जब पढ़ लो तो कॉमेंट जरूर करना वरना क्या पता कुछ अशुभ हो जाये??? ………हा हा हा हा 


:-मनीष पुंडीर 

Wednesday, October 8, 2014

दर्द-ए-दिल

दिल में एक मर्ज़ है जो लाइलाज है 


कैसे बयां करू दर्द-ए-दिल अब लफ्ज़ कागज़ों पर उतरते नहीं........
पहले मिलता था सुकून पर तेरे लिए अब दिल-ओे-दिमाग लड़ते नहीं।

युही लौट आती है तेरी यादें मेरे दिल के फर्श पर जैसे 
सूरज की रौशनी हर सुबह ज़मीं पर पड़ती है.। 

मेरे ज़हन को तेरा ख्याल रूखसत नहीं करता और 
एक तू है जिसे मेरी याद की भी फुर्सत भी नहीं।

उन जगहों में जाकर ख़ुद को यादों में पाता हुँ.…
जहाँ तेरी हस्सी देख खुद की नज़र लग जाने से डरता था मैं। 

कभी ख्यालों से अकेले में जब तेरा ज़िक्र करता है.…
तो ख़ुद से लड़ते लड़ते हार जाता हुँ के आज भी तेरी फ़िक्र करता हुँ। 

प्यार पर भरोसा अपने शयद मेरी ज़िद्द ही थी के.… 
आज अपने इश्क़ को उम्मीद की छड़ी पकड़े देख लड़खड़ाता सा पाता हुँ। 

वक़्त के साथ धुंधलाता सा होता ये अहसास किस के लिए है..... 
कभी खुद से कभी खुदा और कभी अपनी उलझनों से लड़ता हुँ।

हमारी वो साथ बितायी सुकून भरी यादें अक्सर मेरे पास आती है.… 
जब भी अकेला होता हुँ मुझसे कहती आओ तुम्हारी उलझनें बीन दू। 

शिकायत नहीं कोई मुझे तुझसे बस दिल में एक मर्ज़ है जो लाइलाज है.… 
दुखता है जब दुवा में भी दीदार मांगते है और तुम्हे मिलने का वक़्त नही। 

अब मेरी थकी थकी उमीदों को रोज़ तस्सली की नयी खाद देता हुँ.…
मायूसी आती है हर रात हाज़री लगाने में तेरे लौट आने का बता उसे लौटा देता हुँ। 

सबको समझा के बैठा हुँ पर ये दिल एक तमन्ना लिए घूम रहा है.… 
जाने कबसे आंसू बचा रखे है इसने कहता है,तेरे गले लग कर रोयेगा।

बिलखती है साँसे तेरी खूश्बू को पर अब उन्हें में रोक नहीं सकता.... 
फिर सोचता हुँ तू भी मुझे सोचता होगा मेरे लिए तू भी खुद को टटोलता होगा???

:-मनीष पुंडीर 

सीमा से परे सुकून .........

जब हो उदासी।

        
  मैंने लोगों  को हर बार ये कहते सुना है "यार आज कुछ ठीक नहीं लग रहा,कुछ बुरा होने वाला है" बिना वजह परेशान होना तो जैसे आदत हो हमारी,पर कभी बिना वजह खुश रहने की कोशिश की???? मेरे गाँव  में एक दादी रो रही थी मैं उनके पास गया पूछा क्यों रो रहे हो तो उनका जवाब ये था "बेटा कुछ करने को था नही सोचा रो ही लू"। बिल्ली अपने रस्ते निकल जाती है और आपको लगता है आपका पूरा दिन बर्बाद कर गयी,उस बेचारी को क्या पता जितना लोग ट्रैफिक सिंग्नल देख के नहीं रुकते उतना तो उसके सामने रुकते है। पर बिना वजह उदासी से परे आज आपको खुश रहने की छोटी छोटी वजह देता हुँ,जो लम्हें  आप रोज़ाना जीते 
है पर कभी ध्यान नहीं देते। 
           
  अपने कभी सोचा है के गाने सुनकर आपको अच्छा क्यों लगता है इसलिए नही के वो आपके पसंद के है एक बात ज़रा ग़ौर करना जब मूड अच्छा होता है तो आप गाने का संगीत पसंद करते हो जब मूड खराब होता है तो उसी गाने के वर्ड्स पर ध्यान देते है,कभी बस या कार में सफर करते वक़्त हाथ ये मुँह बाहर  निकाल कर हवा को महसूस करना अजीब सी खुशी मिलेगी,आप कही थके हुवे आये और फिर आपको आपकी पसंद की चाय मिल जाये पूरी थकान उतर जाती है,जब नाक में माँ के हाथ से बने मनपसंद खाने की खुशबू जाती है तो भूख ख़ुद-ब-ख़ुद लग जाती है,कभी अकेले में खुद से बात की है अजीब लगेगा पर ख़ुद  को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।  



                   हमेशा आपकी समझ,तर्क से परे जहाँ आप खाली मन से निराशा होते तो सबका समझाना भी वो नहीं कर पाते जो एक लॉन्ग टाइट हग(गले लगना) से कमाल हो जाता है।कभी अकेले बैठे बैठे जब जैकी(pet) आपके पास आये और ऐसा करे मानों पूछ  रहा हो क्या हुवा?? जब अपनी ही पुरानी फोटो देख आपको हस्सी  आये जब ना कपड़े  पहने का ढंग था ना स्टाइल की समझ।कभी अगर सुबह जल्दी आँख खुले जब आसमान में उजाला हो पर सूरज न निकला हो और एक हलकी सी नारंगी रंग की परत आपकी आँखों में चमक रही हो,तो छत पर या निकलना एक बार मॉर्निंग वाक पर उस दिन सुबह से प्यार हो जयेगा।जब जन्मदिन पर खुद के हम एक रात पहले ही ख्यालों में मना लेते है,युही किसी दिन जल्दी पहुँचे ऑफिस से घर,आकर जब पापा शतरंज की एक बाज़ी संग खेल जाते है। 
                        
 जरूरी नहीं के जो सुकून मुझे मिलता है उन्ही कामो में आपको भी खुशी मिले पर कहते है कहानी बदल जाती है लफ्ज़ वही रहत है,आप भी आसपास देख़ो खुशी सुकून मिलेगा बस वजह बदल जयेगी और मन में शांति होगी तो ही जिंदगी सुहानी होगी।जिंदगी कुल्फी सी मेरे यार तुम स्वाद लोगें या बर्बाद करोगे पर कुछ भी करोगे पिघल के एक दिन खत्म जरूर होनी है………… और सबसे अच्छी बात ये जिंदगी की कुल्फ़ी डायबिटीज वाले भी खा सकते है.। 
 
:-मनीष पुंडीर 
                  



Monday, October 6, 2014

यादें

यादें हमेशा जिंदा रहती है। 

                       ल में अपनी कुछ पुरानी चीज़े ढूंढ रहा था तो अचानक मेरी नज़र पुरानी एल्बम पर पड़ी फिर मन पता नहीं क्यों  छोड़ उसे देखने को हुवा मैंने उसे देखना शुरू  किया फिर तो यादों  का ऐसा सिलसिला शुरू की में उन में डूबता गया। उसमे मेरी तब की तस्वीरें थी जब मुझे तस्वीरों का मतलब भी नहीं पता था,अभी तक सिर्फ सुना था के मैं  गुजरात में पैदा हुवा हु पर उन तस्वीरों में मुझे एक बार फिर जिंदा कर दिया।कभी आप युहीं  उदास हो या कुछ करने का मन न कर रहा हो तो अपनी पुरानी यादों में झाँक लेना सुकून मिलेगा फिर जब में एल्बम के पेज पलटता गया तो एक फ़ोटो मिली जिन्हे में नहीं जानता था,मैंने पापा से जाकर पूछा तो उन्होंने ज़रा मन मारते  हुवे कहा मेरी दोस्त थी जो अब शिमला में है तो मुझे पता लगा के तस्वीरों के साथ यादों  में मैं अकेला नहीं था (हाहाहा) पापा भी मेरे साथ थे।
                                     एक कहावत जो हमे बचपन से सिखाई गयी है के वक़्त लौट के नहीं आता पर आप पर है आप उस वक़्त को कितना और किस तरह यादगार बनाते हो,क्युकी यादें बनाने के लिए मज़दूर नहीं लगते वो खुद-ब-खुद बन जाती है।मैंने अक्सर लोगों  को फोटो देख मुस्कुराते देखा है याद है जब पापा कडवाचौथ पर घर नही आते थे  माँ उनकी फोटो  देख व्रत खोलती थी जब हम किसी के छायाचित्र को उसकी उपस्थिति मान सकते है,तो इसी के उलट जब आप कही उपस्थित हो तो उस पल को यादों  के सहारे हमेशा  के लिए जीवित कर दो।वो गाना  तो सुना ही होगा आपने  के "हर दिन ऐसे जियो जैसे की आखरी हो" 
                                    पर ये सब में अपना या आपका समय गुजारने के लिए नहीं कर रहा हुँ के एक बार पढ़ा अच्छा लगा और अगले दिन भूल गए,बचपन की सारी  बातें आपको याद नही रहती पर फिर भी कुछ यादे आपकी दिमाग में धुंदली तस्वीर की तरह होती है,चेतन भगत ने एक बहुत अच्छी बात कही है "जिस दिन आप चले जाओगे तो लोग आपको आपकी सैलरी से याद नही करंगे वो उस वक़्त को याद करेंगे जो उन्होंने आपके साथ हस कर बिताया जब अपने उनके आँसू पोछे होंगे,जिंदगी में कामयाब होना ही सब कुछ नही संतुलन भी जरूरी है क्या फयदा अगर आपकी सैलरी बाकियों  से ज़यादा  है पर आप हर रत चेन की नींद को तरसते हो क्युकी सुब्हे प्रेज़ेन्टेशन देनी होती है।वो बोनस किस काम का के आप अपनों के साथ त्यौहार ना मना सको,क्या सुकून उस प्रमोशन का जब आपके साथ उसकी खुशी बाटने वाला कोई दोस्त ना हो। 



                      इंसान को उस लम्हे की अहमियत तब ही पता चलती है जब वो याद में तब्दील हो जाता है,मेरे यारो पैसा कमाना भी जरूरी है पर यादें  भी आपको ही बनानी है,पैसा तो फिर भी कमा लोगे पर वक़्त को दुबारा कहाँ  से लाओगे।वक़्त से बड़ा कोई तोहफ़ा नहीं होता तो जितना हो सके अपनों को वक़्त दो उनके साथ हँसी  बांटो,ये मेरी सोच ह आप पर थोपना नही चाहता पर अभी जो ग रहे हो ज़रा याद करना पिछली बार खुल कर कब हँसे थे।तो इन संभल के चलने वालो की जिंदगी में थोड़ा बेफ़िक्री से क़दम हिलाओ और अपने मन की धुन पर खूब नाचो-गाओ, मोदी जी टैक्स नहीं लेंगे क्युकी जब हर एक खुद संतुष्ट और स्वस्थ होगा तो अपने आप हर काम अवल होगा। 

:-मनीष पुंडीर 

Sunday, September 28, 2014

नीयत का खेल है बस!!!

कर्म और नियत 


                         हने को हम पढ़े लिखे और अच्छी तरह के सभ्य लोगों  में गिने जाते है पर हाथ में महंगा फ़ोन,बदन पर ब्रांडेड कपड़े और मुँह से अंग्रेज़ी की बरसात क्या यही काफ़ी  होता है?????? मन दुखता है जब हम में से ही कुछ पढ़े लिखे अनपढ़ लोगों  को देखता हुँ जो लोगों  को उनके पहनावे शकल और आकार से आंकते है।इन उच्च विचार वाले लोगों के लिए मेरी एक सलाह वो भी मुफ्त,जनाब अगर रंग रूप आपके हिसाब से तय होते तो सब यहाँ एक जैसे होते और फिर अपनी किसी को कोई पहचान नहीं होती।कमी हर किसी में होती है पर जरूरी नहीं उस एक कमी को उजागर करना गलत है,क्युकी ये भी सच है के कमी के साथ साथ हर इंसान में गुण भी होते है।हम खुद को बेहतर बनाने के बजाए आजकल दूसरों की बुरा देखने में ज़यदा विश्वास रखते है।  

                  ये जो बातें  में कर रहा हुँ  ये काल्पनिक नहीं है कल ही की बात है में मेट्रो में सफर कर रहा था सुबह के वक़्त जो सभी के ऑफिस जाने का समय होता है,भिड़ बाकि दिनों से कुछ जयदा थी एक आदमी जो की कपड़ों  से मज़दूर लग रहा था वो गेट के पास ही खड़ा था उसके आसपास के लोग उसे ऐसे दूर होने की कोशिश कर रहे थे जैसे कोई बॉम पड़ा हो फिर अगले स्टेशन पर एक आदमी जो अपने व्यक्तित्व से काफी सुजला और समझदार लग रहा था उसने उस मज़दूर को धक्का दिया और खुद में बड़बड़ाता चला गया के "पता नहीं कहाँ  कहाँ से आ जाते है" इन शब्दों ने उसकी छवि तोड़ दी जो मेरे मन में बनी थी।सिर्फ कपडों से भेदभाव करने वालों को ये बात नहीं भूलनी चाइये के सब बिना कपड़ो के ही इस दुनिया में आते है,खुद को बड़ा दिखाने  के चकर में लोग अपनी सोच के दायरे को छोटा करते जा रहे है। 


                        
                  किसी को देख के मुँह बनाना सिर्फ इसलिए के वो मोटी है,किसी के साथ बैठ के खाना ना खाना क्युकी वो तुम्हारी जात  का नहीं.…………उस लड़की का सोचो जो दिनभर आईने के सामने बैठ खुद को निहारती है सिर्फ इसलिए की लोग उसे बदसूरत कहते है और वो उस एक की तलाश में है जो उसमे खूबसूरती देखें।उस आदमी का सोचो जो कद में बोना है पर ऊँचे सोल वाले जुत्ते पहनता है के कोई उसका मजाक न उड़ाए,एक आदमी जो हकलाता है बोलने में भी डरता क्युकी आजतक जब भी उसने अपनी बात बोलने की कोशिश की है उसका मजाक उड़ाया गया है।मेरे दोस्तों किसी को निराश करना बहुत आसान है पर किसी में एक हिम्मत जगाना और उसे आशावादी बनाना उसे बड़ी  बात है,आपके छोटे छोटे प्रयास किसी की जिंदगी में बड़े बड़े परिवर्तन ला सकती है।  

         बाकि अब थोड़ी मन की शांति के लिए हम जा रहे है अपने उत्तराखंड तो आपको अब मिलेंगे अगले हफ्ते तब तक मुस्कुराते रहे और खुशी  बाँटते रहे.....बाकि रब राखा 

:-मनीष पुंडीर 



Wednesday, September 24, 2014

पल पल मरना।

अहसास....... 

                                               ये कोई दिल बहलाने वाली कहानी नहीं है ना कोई कविता और मेरे विचार ये में अपने तीन दोस्तों के लिए लिख रहा हुँ जो मेरे दिल के बहुत करीब है,(पहला मेरा लम्बू,दूसरी मेरी मोटो और तीसरी मेरी छुटकी)ये पढ़ के आपसे सहानुभूति या पैसे की उम्मीद नहीं है बस अगर कुछ दिल को छुवे तो दुवा करना क्युकी सुना है जहाँ दवा काम नहीं करती वहाँ  दुवा काम आती है।हम सब शिकायते करते है हर चीज़ को लेकर खाने से लेकर देश की सरकार तक पर कभी सोचा है एक इंसान ऐसा भी जो 365 दिन 24 घंटे काम करता है और एक दिन की भी छुट्टी नहीं करता बल्कि संडे और त्योहारों  में उसका काम डबल हो जाता है वो ना कभी प्रमोशन के लिए लड़ता है ना कभी काम करने से मना करता है.। मेरी बातों  पर विश्वास नहीं में बात कर रहा हुँ "माँ"की अब जो बातें  कही खुद सोच के देखना क्या कभी आपको माँ ने कहा मै  काम नहीं करूंगी??? 
                          जो भी कहो माँ जैसा कोई नहीं होता उन्हें कभी दुखी मत करना वरना कभी  खुश  नहीं रह पाओगे,माँ अकेली तुम्हारे लिए दुनियाँ से लड़ सकती है आप सोच रहे होंगे में माँ को लेकर इतना सेंटी  क्यों हो रहा है.। मैंने कहा था ना ये तीन दोस्तों के लिए लिख रहा हुँ उन सब में एक चीज़ सम्मान है माँ को खोने का दर्द और डर सुनें में भयानक है पर सच है मेरे तीन दोस्तों में दो लोगों की माँ नहीं है और तीसरी  हालत इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हो के जब दिमाग को पता है के ये मुमकिन नहीं और दिल मानें को राजी ना हो.……।अपने  फिल्म आनंद देखी है उन्हीं हालातों  में खुद को रख कर देखो किसी ऐसे को खुद से दूर जाते देखना जिसे आप नहीं जाने देना चाहते पर मज़बूरी के चलते,सिवाए बेबसी से उसे दूर जाते देखना एक बुरे सपनें  से कम नहीं है। 
                                    मैंने तीनों के दर्द को बहुत करीब से देखा है उन्हें अकेले में रोते देखा है,उनकी आदतों  में वो कमी महसूस की है मैंने जैसे पर सिवाए उन्हें समझाने के में भी  चुप हो जाता हुँ।उन्हें हिम्मत देते देते अकेले में उनसे छुप के में भी रो जाता हुँ,पर मुझे दुवा चाहिए मेरी छुट्ट्की की माँ के लिए उन्हें बीमारी है वो आखरी स्टेज पर है मुझको उनका हँसता  चेहरा आज भी याद आता है जब सब उनके घर मस्ती मारा करते थे। पर वो घर दो साल से बंद है जब भी उस गली में जाता हुँ उस घर पर जरूर रुकता हुँ आंटी इलाज के लिए पिछले २ साल से दिल्ली में है.। 
                                         दो साल से मैंने उसके चेहरे पर वो मासूम बेफ़िक्र हस्सी नहीं देखी,शायद उसको भी याद नहीं होगा के आखरी बार पुरे परिवार के साथ कौन सा त्यौहार मनाया होगा। मेरी आखरी बार जब छुटकी से बात हुई थी तब उसने बताया के उनकी बॉडी में खून नहीं रुक रहा हर शुक्रवार उनको नया खून चढ़या जाता है पर हफ्ते के अंत में होमोग्लोबिन ना के बराबर रहता है,पर माँ पहले से जयदा स़्वस़्थ हो रही है बस ऐसे ही उनको जल्दी ठीक करने के लिए दुवा मांगने की आपसे दुवा मांग रहा हुँ। 

:-मनीष पुंडीर 

                        

                      

 """""आज कुछ बताने का मन है मै जितनी भी सच्ची भावुक कहानियाँ  लिखता हुँ ख़ुद  को मजबूत करने के लिए क्युकी ये वो कहानियाँ और बातें है जो अकेले में भी सोच कर मुझे मानसिक रूप से कमज़ोर करते थे पर अब उस डर  को में खत्म करके आपके सामने हुँ  आज.।शायद मेरी ये बात आपको बचकानी लगे पर मेरे ये तीनों  दोस्त मेरे साथ पिछले 10 साल से है जयदा वक़्त से मेरे साथ है मुझे कही न कही लगता है के में उनके साथ जुड़ा हुँ तो कही न कही में इन सब चीजों  का ज़िम्मेदार हुँ।ये मन में हर बार ना चाहते हुवे भी आता है जिससे भी जयदा लगाव रखता हुँ उसके साथ बुरा होता है।बस दिल की बात थी आप तक पहुँचा दी पर दुवा करना माँ के लिए """""



Sunday, September 21, 2014

मतलबी दुनिया.........

ये दुनिया है यहाँ आदमी याद मतलब तक.. 



सभी है मतलब से यहाँ बस सभी मतलबों के मायने अलग है,
कड़वी है बात पर आखरी वक़्त में कोई ना रहता साथ…। 

अंधे को रास्ता तो कोई भी पार देता है करवा,पर आँखे देने वाले कम ही होते है.. 
याद रखें इस बात का जो जिंदगी में कभी हाल पूछने नहीं आये वही सबसे जयादा आंसू रोते  है.। 

"डॉक्टर यही चाहता है के आप बीमार पड़ो,
कफ़न बेचने वाला आपके यहाँ किसी के मरने की राह देखता है।
एक  वक़ील  हर वक़्त आपके घर में कलेश होने की दुवा करता है.… 
सिर्फ एक चोर है जो आपके सुख चेन की नींद भगवान से मांगता है"

इंसान की बहुत पुरानी आदत है अपनी सारी  गलती किस्मत पर थोपना..... 
देख कर चलते नहीं खुद और ठोकर लगने पर पत्थर को दोष देते है.। 

मतलब के लिए भगवान को भी "स्कीम्स" के लपेटे में लपेटा जाता है.… 
खुद सरसों का तेल खाने वाला,चढ़ावे के लिए लड्डू भी देसी घी के लाता है.। 

मैंने देखा है लोगों को दूसरों की औक़ात के हिसाब से अपना लगाव तोलते हुवे…… 
अपने मतलब की रोटी सेकने को सामने भला कहने वालो को,पीठ पीछे बड़ा मुँह  खोलते हुवे।


हमने नही छोड़ा किसी को,जिसका मन भरता गया वो हमें भूलते गए..
हम उनकी ख़ुशी के लिए उन्हें हसाते गए और वो जोकर समझ हमारा मजाक बनाते गये.

हद तो तब हुई जब उन्हें आदत हो गयी मुस्कुराने कि और वो कीमत पूछने लगी उन्हें हसाने कि.। 

:-मनीष पुंडीर 

Friday, September 19, 2014

‪खामोशी‬

दिल में एक फ़ास है जो लाईलाज है.।

प्यार जिसका पहला अक्षर ही विकलांग है,क्या उम्मीद करू इसे!!!!
खुद तो लाचार है,जिसके पास होता है वो भी लाचार हो जाता है.. 

यु यूँ   गयी है हालत अब के हालातों पर भी खुद की अब हँसी  आती है.…
कल तक जो ख़ास था जीना-मरना जिसके साथ था,आज वो ही पास नहीं है.… 

शिकायतों के सिवा अब और कुछ बचा नहीं,हम प्यार को और प्यार हमे कुछ जच्चा नहीं।
लड़ने की भी उसे अब हमारी हिम्मत नहीं होती,ये खेल नहीं यहाँ  जीत किसी को नहीं होती।

अब ना कुछ खोने का डर है और ना ही किसी को पाने की चाह.… 
आँखों में है आँसू पर में रोता नहीं,वो दिख ना जाये ख्वाबो में ये सोच में सोता नहीं।

नफ़रत भी होती है उसके दूर होने के ख्याल से पर फ़िर अपने ही प्यार पर शक होता है.। 
पता उसे भी है के खबर हम उसकी आज भी रखते है,बस अब वो जताते  नहीं और हम बताते नहीं ....

अपनी बेफ़िक्री का बहाना बना हँसी खुद की उड़ा लिया करते है,अंदर आज़ भी दिल-ओ-दिमाग लड़ा करते है.. . 
यारों में बैठ कभी जिक्र जो तेरा हो जाता है,हम भी यादों के पन्नों से कुछ चुरा लिया करते है.…

मंजिल भी खो दी हमसफ़र भी नहीं रहा,नहीं होगा अब हमसे अब हमारी दुवाओं में वो असर नहीं रहा.....
प्यार इश्क़ और मोहब्बत जो खुद आधे है,बस उसी को पूरा करने में मेरी कहानी अधूरी रह गयी.……


आज मन शांत है,दिमाग किसी उधेड़बुन में लगा है.… 
यूँ तो बहुत है उलझने पर सुलजाने का मन किसका है.…
किसको दोष दू इस बात का,अब बहस करना भी हमारे बस का नहीं।

सुनकर ग़ज़लों को उनकी धुन में खुद को गुम कर रहा हुँ..... 
कोई शिकायत नहीं किसी से है बाकि एक फ़ास है जो लाईलाज है.।
काश कहने से भी अब होगा क्या?? वक़्त बदलेगा नहीं और किस्मत समझेगी नहीं।
कुछ सिख लिया है इस अकेलेपन से जैसे खुद को पा लिया हो तुझे खोते खोते....
प्यार से अपना हिसाब अभी बाकि है,बुलाओ उस यादों को जिसने हमे देखा साथ में.....
फिर बताऊंगा इस दिल को के फर्क इतना है,मुझमे और मेरे प्यार में.....
प्यार को मरना नहीं आया और उसके बगैर हमें जीना नहीं आया.........

Wednesday, September 17, 2014

बाँटो हंसी खुशी प्यार पैसे नहीं लगते।

एक बार सोच के देखो………


                                                       बचपन में हम खुशियों  की वजह नहीं ढूंढते थे हर चीज़ में खुशी मिलती थी हमे याद करना जरा एरोप्लेन जाता था उसे देख हम टाटा करके कितने खुश  होते थे,जब घर क बाहर आइस-क्रीम वाले की घंटी टन -टन करती थी तो हम खिड़की से ही आवाज़ देकर उसे रोकते थे तब कितनी खुशी  मिलती थी।पापा के जूते चुपके से पोलिश करके उन्हें देते थे,माँ की ऊँगली पकड़ के सोते थे। मेरा मानना है की ये मासूमियत हमेशा अपने साथ रखोगे तो खुश रहना भी सिख जाओगे और खुशी बाटना भी सीख जाओेगे,हर एक के अंदर बड़े होने के बाद भी मन में एक बच्चा छुपा होता है उसे जिन्दा रखोगे तो जिंदगी में खुश रहोगे। पर ये मेरा मानना है क्युकी मैंने ये खुद महसूस किया आपको मानना  है तो आप भी आज़मा के देख सकते है,बाकी जिस दिन खुद ये महसूस करो तो आगे भी ये सोच बढ़ा देना।बाकि टॉम एंड जेरी देख के शायद आज भी हँसते  हो तुम????      
                              पैसो से खुशी नहीं खरीदी जाती कभी एक गुलाब का फूल वो काम कर जाता है जो एक हीरे की अंगूठी नहीं करवा सकती,हँसने की आदत ही डाल लो आपका हँसता चेहरा देख क्या पता कुछ देर के लिए ही सही कोई अपनी फ़िक्र ही भूल जाये।कितना महंगा है किसी को मुस्कान बाटना????  उतना ही महँगा जितना सूरज से रौशनी लेना,चाँद को मामा कहना..........मानों या ना मानों पर थोड़ा थोड़ा छोटी छोटी चीज़े करके बड़ी बड़ी मुस्काने पा सकते हो।हाँ  हाँ  समझ गया मन में चल रहा होगा कैसे?? लो जी जितना हमारे पले पड़ा है आजतक वो आपके पाले में भी भेज देते है.


            
                        आज घर जाकर माँ को गले लगा कर या जो मेरी तरह उनसे दूर है उन्हें फ़ोन करके "I LOVE YOU SO MUCH" कहना सुकून और खुशी का परफेक्ट कॉम्बिनेशन तब एहसास  होगा,हर किसी को मुस्कुरा कर थैंक्यू बोलना अपने ऑफिस बॉय से लेकर दूध वाले भईया तक को उसी तरह जैसे बचपन में घरवाले सीखते थे "कोई अंकल आपको  चीज़ी  दे  तो उन्हें थैंकू  जरूर  बोलना " ये आदत का सुकून का पता उन चेहरों पर देखना जिन्होंने लोगों  की झिकझिक के इलवा आज थैंक यू सुना।हम वैसे जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करते और खराब माहोल को दोष देते है अब्ब्ब्ब्बे यार माहोल ठीक करने रजनीकांत जी आयंगे नहीं??? पर इंडिया-पाकिस्तान का मैच हो स्कोर पूछने में हम नहीं सोचते,जब कोई आपके सामने लडख़ड़ा कर गिरे तो आप उठाने जायंगे इसी उमीद में कल को हम भी तो लडख़ड़ा सकते है। 
                              बहुत सी ऐसी चीजें है जो हमें  एक दूसरे से अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ती है उन चीज़ो को लेकर हम सोचते नहीं है एक हमारा इंडिया-पाकिस्तान का मैच,हमारा खाना सरदार जी को डोसा पसंद है तो हमारे बासु डा को छोले भटूरे हमारी तमिल वाली आंटी को ढोलका बड़ा सवाद लगता है और हमारे गुजराती भाई को सरसों के साग का स्वाद अज़ीज़ है।अपने यहाँ तो जी इंसान को खाना खिला कर खुश कर दे,खेर खाना तो हमेशा रहेगा,ये बताओ कभी खून दान किया है करके देखना किसी का जान बचाने का एहसास क्या होता है पता लगेगा।कौन कहता है आजकल बिना शर्तों  के प्यार करने वाला नहीं मिलता??? अजी ढूंढने वाला  चाहिये यकीं नहीं तो कभी किसी नन्ही सी जान (pet) को घर लाकर देखना और अपने साथ रखना आपके लिए तो शायद वो सिर्फ एक जानवर हो पर उसके लिए उसका सब कुछ आप ही होंगे।
                      

                                    जिंदगी माना थोड़ी व्यस्त है सब अपने अपने कामों में मस्त है ज़यादा पैसे कमाने की दौड़ जबरदस्त है,पपरररररर हमने कौन सा आपको ताज़महल बनाने को कह दिया ग़ौर करना अगर थोड़ा भी कुछ समझ में आया हो तो.………………?????? तो क्या वो भी में बताऊंगा।आपके लिए एक लाइन "पहले इस्तेमाल करे,फिर विश्वास करें" पैसे कमाने के चक्कर में यादें  गवा दोगे,पैसे तो फिर भी कमा लोगे वक़्त को दुबारा कैसे पलटोगे?? ।बस मुझे इतना ही आता है अभी तक इतना ही सिखया जिंदगी ने पर मुझे तो खुशी  बाटना आ गया,अब इतना ही कहना था बाकि आप पर है आप इसे पढ़ के एक बार मुस्का भी गए तो भी हम खुश और इसी सोच को खुद महसूस करके जियोगे तो आप बी खुश और हम तो पहले से ही खुश  है   .……… हा हा हा हा हा हा। 
    
:-मनीष पुंडीर 

Tuesday, September 16, 2014

दिमाग है सोचने के लिए ना की भेड़ चाल के लिए.…।

आधा सच एक झूठ से भी अधिक खतरनाक होता है..... 


                   
                           जैसे की हम सभी को सामाजिक पशु कहा जाता है,पर वक़्त के साथ साथ लोगो की सोच भी पशुओं  जैसी होती जा रही है।हाल ही में एक घटना ने काफी खलबली मचा दी है "स्वेता बासु" घटना इन्ही से जुड़ी है,इनका नाम कुछ दिनों पहले वेश्यावृत्ति के मामले में सामने आया है।इन्हे एक पांच सितारा होटल से पकड़ा गया,पर इनके साथ जो श्रीमान थे उनका कोई अता -पता नहीं है।अब लोगों तक सिर्फ इतना परोसा गया के ये वेश्यावृत्ति में थी,किसके साथ पकड़ी गयी और कौन कौन जुड़े है इस मामले से??? 
                                      खेर अगर कभी च्यवनप्राश खाया हो तो थोड़ा "स्वेता बासु" के बारे में याद करवा दू ,ये वही है जो मकड़ी फ़िल्म में अपनी बहन  के लिए चुड़ैल  से लड़ी थी और इक़बाल में अपने गूंगे-बहरे भाई की आवाज बनी थी। इनके नाम एक राष्ट्रीय पुरस्कार भी है फिर खबर ये आई के इन्होंने कहा के "मेरे ऊपर घर की जिम्मेदारियाँ  थी इसलिये  मैंने ये कदम लिया"।इनकी ये बात हमारे समाज के गले नहीं उतरी अब उतरे भी कैसे यहाँ  मीडिया की बात पत्थर की लकीर वाला हिसाब है,अब हमारे सामाजिक पशुओं से ये पूछना चाहता हुँ।इंसान की तीन मूल अवकसता होती है रोटी,कपड़ा  और मकान और जब ये तीनों  में से एक की कमी पड़  जाये तो जो उसके बस में होता है उतना वो कोशिश करता है। 
                                       बाकि यहाँ बात वेश्यावृत्ति की बात है,कई देशों  में ये वेश्यावृत्ति को कानूनी तौर पर मंजूरी मिली हुई है।जब आप इस चीज को बढ़वा दे सकते है मरने के बाद अपनी आँखे दान करो,खून दान किया करो.…………………तो वो उसका शारीर है वो अपनी मर्जी से उसके साथ कुछ भी करे।रेप के लिए कैंडल  मार्च करने से कोई अच्छा काम नहीं हो जाता,सोच बदलो अगर नहीं बदल सकते तो इंतजार करो अगले बड़े रेप का और फिर जाना कैंडल लेकर।खुद को कभी उस जगह रख कर देखो जिसपर सब उंगली उठा रहे हो कोई साथ देने को तैयार ना हो,जिसपर बीती हो जिसने वो वक़्त देखा हो के आँसू आँखों में थे पर बाहर  नहीं आने दिए क्युकी दुनियाँ मज़ाक बनायेगी।


                         बाकि आजकल सबकी पसंद सनी लियॉन किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हाँ पहले ये लोगो के कम्प्यूटर के हिडन फाइल्स में छुपा करती थी अब सबके सामने है,मुझे सनी से कोई दिक्क़त नहीं पर और उसे भी अपने बीते कल से कोई शिकायत नहीं है क्युकी वो उन्होंने खुद चुना था।आपको पता लगे के जिसे अपने शादी की उसका रैप हुवा था तो आप क्या करंगे??? में किसी का पक्ष नहीं ले रहा पर आप लोगों  की सोच को मेरा नमस्कार है,कैसे कर लेते है आप ऐसा?? मानना पड़ेगा।जिंदगी फिल्मों की तरह नहीं होती यहाँ किसी विलन की ज़रूरत नहीं पड़ती ये खुद-ब-खुद रुलाती भी है,हँसाती भी है और सिखाती भी है,मजबूरी  बहुत बुरी चीज़ होती है वक़्त आने पर सबकुछ छीन  लेती है। 


  बाकी दो दिन पहले खाई सब्जी आपको याद नहीं रहती तो ये मेरी बातें एक बार पढ़ने  से क्या होगा?? अब मै सब कुछ बदल नहीं सकता पर,इस "मै को हम " करने का प्रयास करता रहूंगा। बाकि जो मेरे मन में एक सवाल अभी घूम रहा है कृपया उस पर अपने विचार दे.…… तो एक अधूरे सच के साथ लोगों ने एक अच्छे कलाकार को खो दिया??? 

:-मनीष पुंडीर 


Monday, September 15, 2014

भूत वर्तमान और आप पर है भविष्य……………

हम इंडियन नहीं भारीतय है.....!!!

        


 मुझे किसी अन्य भाषा से कोई दिक्कत नहीं है परन्तु मै आप सभी लोगों  को केवल इतना याद दिलाना चाहता हुँ  के हम भारत में रहने वाले भारतीय है,हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है।"सरल स्पष्ट और सुलझी हुई" पर हमारे यहाँ से अंग्रेज़ चले और अपने पीछे अंग्रेजी छोड़ गए,वैसे मेरी कुछ बातें शायद आपको बुरी लगे पर अब हर किसी को करेला पसंद भी तो नहीं आता।जैसे की मैंने ये खुद महसूस किया आजकल अगर लोगों को थोड़ा बहुत हिंदी में दिलचस्पी है तो वो दो ही वजह है पहला हिंदी के बेटे "कुमार विश्वास" की प्रेम पर लिखी कविताओं  से और दूसरा "यो यो हनी सिंह" के रैप पर। तो मेरी यही कोशिश रहेगी दोनों की थोड़ी थोड़ी शैली लेकर आपको अपनी बात बताने की कोशिश करू। 
तो हिंदी के भूतकाल पर नज़र  डालते है चलिए कुछ यादें  आपकी भी ताज़ा करवाते है!!!
      "हिंदी" जब बोलना सीखा था तब पहला शब्द "माँ" ही निकला था
               दादी-नानी के किस्से रात को सोने से पहले बड़े मजे से सुनता था.
                     स्कूल में बचपन की वो चंपक भी तो तेरी ख़ास हुवा करती थी.
                        और कैसे भूल सकता है तू राजा,रानी,चोर,सिपाही की वो पर्ची।


एक वक़्त था जब सुबह आँख कबीर के दोहों  के साथ खुलती थी और रविवार को DD1 पर महाभारत और श्री कृष्णा के श्लोकों का अर्थ दादी-नानी समझाती थी,पर अब हालात कुछ बदले है  "अ आ इ ई" पूरी आती नहीं किसी को पर "A B C D" आजकल एक साँस  में सबको रटे  है।अब सबको वैलेंटाइन डे हमेशा याद है रहता पर हिंदी दिवस की तो लोगों  को जानकारी भी नहीं,मेरे यारों  एक बात याद रखना
               "खुद में कितना भी विदेश ले आ जितना लाना है,पर अंत में लौट के बुद्धू घर ही आना है"। 
                  "घूम तू पूरी दुनिया में पर पाप धोने आखिर में गंगा ही आना है.……
 हम भारतीय बहुत मतलबी हो गए है,कल को अगर मोदी सरकार ने ये योजना खोल दी के जो हिंदी भाषा का प्रचार करने वालों का टैक्स नहीं देना पड़ेगा तो पुरे भारत में अगले ही दिन अंग्रेजी प्रयोग करने पर रोक लग जाएगी।आज सबकी सोच "मै" की हो गयी  है जिस दिन मै  की जगह हम सोचने लगंगे उस दिन देश  विकास की असली सुरुवात होगी। 
              अब हिंदी बोलने वालों  को भारत में अनपढ़ 
समझा जाता है,अब नमस्कार हाई-हेल्लो में बदल गया है।ऐसा नहीं है लोग हिंदी पसंद नहीं करते या बोलने में अटकते है,नहीं बात सिर्फ हिचकिचाहट की है के मै   बोलूंगा तो सामने वाला मुझे कम  समझेगा या उसके सामने इज्जत घट  नहीं जयेगी।अमा यार अब  मोदी जी बाहर  जाकर हिंदी में भाषण दे आये अब भी समझ नहीं आया अच्छे दिनों के लिए हिंदी उतनी ही जरूरी है जितनी अंधे के लिए आँखों की और ठाकुर के लिए रामलाल के हाथों की।बाकि हिंदी हमारी मातृ भाषा है तो कभी माँ को माँ बोलने पर शर्म आई है बाकि हिंदी के साथ ऐसा क्यों??????
                    हाँ उन लोगो के लिए कुछ जरूर कहना बनता है जो ट्रेंड के नाम पर अंग्रेज़ी के शुभ चिंतक' बने बैठे है,इस बात पर कुमार विश्वास जी ने बड़ी अच्छी बात कही 
"ये चकाचौंध की दुनिया ये ग्लैमर ये ट्रेंड सब अमिताब बच्चन के ज़माने  के है,हम हिंदी प्रेमी हरिवंश राय बच्चन की परंपरा के लोग है"
       बाकि  समझदार को इशारा काफी कल के लिए आपको आज से सुरुवात करनी होगी,हिंदी हमारी है उसे उसी तरह अपनाओ जैसे अपनी माँ के लिए मन में आदर का भाव रखते हो,माँ के आशीर्वाद में "जिए तू जुग  जुग" तो हर वक़्त सुना होगा अब आपकी बारी  है।आप आशीर्वाद तो नहीं दे सकते पर इतना जरूर कर सकते हो के आपकी हिंदी माँ युगों-युगों तक फले-फुले और आने वाली पीढ़ी की माँ से "जुग जुग जियो" का आशीर्वाद ही मिले। 

:-मनीष पुंडीर 
  

Friday, September 12, 2014

अजीब जिंदगी।

जिंदगी कैसी है पहेली हाय.?






याद है आनंद  फिल्म की ये लाइन्स जिन्हे आज भी सुनो तो उतनी ही यथार्थ लगती है जितनी पहली  बार सुनें  में लगी थी.…।
" बाबूमोशाये , जिंदगी   और मौत उपरवाले के हाथ है जहाँपनाह। उसे ना तो आप बदल सकते है ना मैं ,हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर उपरवाले की उंगलियो में बंधी है। कब……कौन.…कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता है। …हा हा हा हा '"

बहुत अजीब है अपनी ये जिंदगी हँसाने  वाले बहुत मिलते है पर याद हमेशा रुलाने वाला ही आता है.… 
यहाँ लोगों  की तमनाये ख़त्म  नहीं होती जाना सब स्वर्ग चाहते है,पर मरना कोई चाहता नहीं ……। 

जिंदगी क्या है कितनी है सबके अपने फंडे  है सबका अपना राग है,
किसी के लिए कल की फ़िक्र तो किसी के लिए बस आज है.
मज़बूरी-मुक्क़दर सबके हिस्से है सबके पास अपने अपने किस्से है 

जयादा हँस  भी लो तो भी आंसू निकल आते है और कभी एक हँसी  हँसने  को भी जी नहीं करता।
जिंदगी का सीधा हिसाब है कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ेगा,
जितनी हँसी  लिखी है होटों  पर उसके लियें आँखों को उतना ही रोना पड़ेगा …… 
कोई जिंदगी पैसों के लिए खर्च कर देता है,बाकि कुछ दूसरों  की खुशी में अपने मुनाफे की हँसी से खुश  है!!!

कोई समुन्दर की मछली बनकर खुश  है,तो कोई तालाब का मगरमच्छ होकर सुकून में है..........
कुछ जिंदगी एक ही काम में लगा देते है तो कुछ एक ही जिंदगी में सारे काम कर जाते है.… 
सुकून तेरा कहाँ  है? ये तुझे ही चुन्ना है,कोई और नहीं आने वाला तेरी खुशी  के लिए तुझे ही लड़ना है.
जाना एक दिन सबने है पर जाने के बाद कौन तुझे कैसे याद करता है ये तेरे आज पर निर्भर है,
तू जिंदगी में अपनों को कमाता है या कुछ चीजो के लिए उनको गवाता है ये सिर्फ तुझ पर है.……। 

तेरे रोने से उसी को फर्क पड़ेगा जिसके आंसू पोछने तू कभी गया होगा,
उसी से मांगने ही हिम्मत होगी तेरी जिसे कभी कुछ दिया होगा।
कड़वी सचाई है जिंदगी की सभी यहाँ मतलब से जुड़े है,हिसाब यहाँ बाप-बेटे में भी है।
आाजकल उलटी गंगा बह रही है,अपनी खुशी से जायदा दूसरों का दुःख अब लोगो को सुकून देता है। 
कल की फ़िक्र में आज की हँसी अगर खोता जयेगा,तो ना तेरा वो कल आएगा ना आज को जी पायेगा....
कुछ नहीं हासिल होगा तुझे फिर आखिर में तू किस्मत को रोता जयेगा। 

:-मनीष पुंडीर 

आखिर में ग़ालिब का शेर जो बहुत खूब सिखाता है जिंदगी का फलसफा
        
"कुछ इस तरह मैंने जिंदगी को आसान कर लिया,

         किसी से मांग ली माफ़ी और किसी को माफ़ कर दिया।"

तीन बहनों का एक भाई

                 मैं  तीन बहनों का एक भाई था और वो भी उनसे बड़ा, बचपन से ही उनकी परवाह करता रहा मां ने सिखाया था। मेरा बचपन थे वो अभी हाल ही...