Friday, April 19, 2024

तीन बहनों का एक भाई





   
             मैं  तीन बहनों का एक भाई था और वो भी उनसे बड़ा, बचपन से ही उनकी परवाह करता रहा मां ने सिखाया था। मेरा बचपन थे वो अभी हाल ही में आखरी बहन की भी शादी हो गई और अब लग रहा है बचपन चला गया। पिता जी आर्मी में थे तो मेरा आधा जीवन इन चारों ( तीन बहने और मां) के साथ ही बीता। अब मैं खुद एक पिता हूं पति हूं पर वो अंदर का भाई चिड़चिड़ा है वो बहनों का घर में न होना स्वीकार नहीं कर पा रहा। तीनों के साथ लड़ाई झगड़ा अपने जगह था पर परेशानी में एक दूसरे को ही याद करते थे हम, ऐसा नहीं है शादी के बाद बात अब कुछ बदल जाएगा पर अब सबके किरदार और जिम्मेदारियां बढ़ गई है। मैं बड़ा था घर में तो किसी ने कोई किताब नहीं दी थी के भाई कैसे होते है, इन लोगों के साथ बड़ा होता गया जैसा सही लगा वैसा कहता करता गया। सही गलत से परे मैंने उन्हें उन वो समझ दी की वो मुझसे हर विषय में खुलकर बात कर सकें ताकि मैं अपने अनुभव से सबसे बेहतर सुझाव दे सकूं। 


    उनके करियर, हेल्थ, रिलेशनशिप जहां जहां सुझाव की जरूरत महसूस हुई वहा उन लोगों से बात की। आप जब बड़े होते हो और कोई सही गलत समझाने बताने वाला नहीं होता तो आप अपने अच्छे बुरे अनुभवों से समझ प्राप्त करते हो और ये आपकी ज़िम्मेदारी बनती है की आप वो समझ अपने छोटो तक पहुचाओ। हर बहन के अंदर एक मां वाला अंश छुपा होता है, जो आपको परेशान नहीं देख सकता फिर चाहे आप उन्हें कभी भी कुछ पकाने के लिए कह दो, या फ़िर किसी फनशन में क्या पहनु में उनकी राय लेनी हो। राखी पर तीनों में लड़ाई होती थी मेरे गिफ्ट से ज्यादा अच्छा दूसरी बहन का उसके चलते अब मैंने पैसे देने ही शुरु कर दिए, कई बार तो इस लड़ाई हो जाती की एक दूसरे को शक्ल नहीं देखना चाहते पर कुछ देर बाद फिर वही नॉर्मल। हम सब के प्यार प्रेम को एक वजह ये भी रही की किसी ने मन में कुछ नहीं रखा लड़ाई भी जमकर की एक दूसरे को बहुत कुछ बोला पर जब एक दूसरे को दुखी देखा तो फ़िर परवाह भी पूरी दिखाई। आज ये तीनों बड़ी है, दुसरे घर को बहु है पूरा परिवार संभाल रही है पर फिर भी वहीं चिंता रहती है जैसे बचपन में उन्हें स्कूल से लाते वक्त रहती थी।  


      एक चीज़ जो मैं उन्हें भी और अमूमन सबको कहता हूं चाहे आप अरेंज मैरेज करो या प्रेम विवाह करो। दो लोग नहीं दो परिवारों में होता है और कुंडली मिले न मिले पर निभाने वाला मिले तो सब अच्छे वक्त खुशी से काट जाएंगे और बुरा वक्त एक दूसरे को हिम्मत बनकर निकल जाएगा। बाकी ये पति पत्नी की तू तू मैं मैं हम अपने दादा नाना के दौर से देखते आ रहे है, वहा आपको तालमेल बिठाने के लिए थोड़ा अपने बात कहने के तरीके बदलने होंगे। मैं सामने उनके कभी नहीं कहता कि मुझे उनकी परवाह है या उनके लिए अच्छा ही मांगता हूं पर वो ये समझती है और ये आपसी समझ मुझे बहुत सुकून देती है। तीनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग है पर तीनों अपने अपने तरीके से समझदार है अपना अच्छा बुरा समझती है, इतना ही कहना है घर की चिंता करो पर इतनी मत करने लगना के जिस घर में रह रहे हो वहा दिक्कत होने लगे। 

खुश रहो, स्वस्थ रहो.


:– मनीष पुंडीर 

Sunday, March 31, 2024

मामला मलाल का...







हम इंसान हमेशा और अच्छे या ज्यादा की ख़ोज में अपने ही ख्यालों को उम्मीदों की खाद देते रहते है। पर देखा जाए है तो ये एक चक्र ही मैं अपने अनुभव से अपनी बीती बता रहा हूं, आपकी कहानी अलग होगी पर उसमें भी चक्र ही होगा तो अपना चक्र समझो। इंसान आज में बीते कल को ढंग से जीने का एक और मौका चाहता है और आने वाले कल के लिए जानें कौनसी तैयारियां जबकि किसी को कोई अंदाज़ा नहीं कल क्या होगा ?? बचपन में एक कहानी सुनी थी मैंने जब हम स्कूल में होते है तब वक्त होता है शरीर में ताकत होती है पर पैसे नहीं होते, फ़िर जब कमाने लगते है जब ताकत थी पैसा भी था पर समय नहीं था, फिर रिटायर्ड होकर पैसा होता है, समय भी होता है पर शरीर में ताकत नहीं रहती। इतना समझ आता है हमेशा सब कुछ तो एक साथ कभी नहीं मिलेगा सही समय जैसा कुछ नहीं होता, जो इंसान पा लेता है वो उसे फ़िर आम लगने लगता है। 



       जिन्हें आंखे मिली वो नजारों से खोट खोजते है, जिनकी आंखे नहीं है वो बस देखने को तरसे। सबके अपने मलाल है– सबके अपने सवाल है, कोई जवाब ख़ोज रहा–कोई क़िस्मत को कोस रहा। एक बात बता दूं मसले सबके साथ यहां आपके धर्म, जात, औकात, स्त्री पुरुष होने से इसपर कोई फ़र्क पड़ता नहीं, फ़र्क पड़ता है आपके नज़रिए से क्योंकी आपकी कोशिशें और कोई न जानता है न ही उसमें भाग ले सकता है। सबको समझाना आपकी ड्यूटी नहीं है, न ही आप ये कर पाओगे। बस अपने किए और कहे की जिम्मेदारी ले बाकि दुसरे सब अपने हिसाब से ही चीज़े करेंगे। तो अंत में इतना ही कहूंगा दूसरों से तुलना करके अपने मन को दुविधा में मत डालो बल्कि अपने मन को भरोसा दिलाओ के आप भी कुछ बेहतर कर सकते हो, इंसान को दूसरों से ज्यादा इस बात का ध्यान रखना चाइए की वो ख़ुद के साथ अंतर्मन में क्या बात कर रहा है और अपने साथ कैसे बर्ताव कर रहा है।



:–मनीष पुंडीर 

Thursday, August 19, 2021

बहनें...

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.


          

                    ये सिर्फ़ ये सोच के ना पढ़े कि राखी है इसलिए ये लिख रहा हूं, बस ये इसलिए भी है शायद आप भी अपनी बहनों को ये भेज सके और अपने भाई वाले इमोशन को शब्दों में बयां कर सकें। बहन छोटी हो या बड़ी एक चीज़ दोनों बातों में एक सी रहती है और वो है "केयर" , उन्हें दूसरी मां कहना या पहली दोस्त कहना भी गलत नहीं होगा। बचपन में आपके राज़ संभाल के रखने वाली, शादी पार्टी में क्या पहनना है ये बताने वाली, आपके साथ WWF खेलने वाली। रिमोट को लेकर हर बार लड़ती थी, उनका कोई भी काम करवाने के लिए हमेशा रिश्वत लगती थी। अपना खत्म करके उनकी प्लेट से खाना और उनके साथ मिलकर हर बार त्यौहार पर घर साफ करना और सजाना।

 

                  बहनों की बातों में सही गलत की छन्नी नहीं होती कभी, वो आपके सही तो सपोर्ट भी करेंगी और गलत होने पर शिकायत लेकर पापा के पास भी पहुंच जाएंगी। मैं बहुत लकी हूं क्योंकि मेरी तीन बहनें है, पापा आर्मी में थे तो उनका घर आना साल भर में कम ही होता था। मेरा बचपन मां और तीनों बहनों के साथ बीता जिससे मुझे लड़कियों की इज्ज़त क्यों करनी चाइए ये समझने में मदद मिली, कहीं न कही बहनें आपको एक बेहतर इंसान बनने में भी मदद करती है। आपके कहानी किस्से अलग हो सकते है, पर वो प्यार और लगाव सब जगह एक सा ही रहता है।

 

                    भले ही हम भाई कितना भी लड़ते हो, बहनों का मज़ाक उड़ाते हो या उन्हें ये चिड़ाते हो कि मां मुझे ज्यादा प्यार करती है। लेकिन जब उन्हें कोई कुछ बोले या परेशान करें तो फिर आप सुपरमैन हो जाते हो, वैसे तो हम लड़को को समझाया जाता है कि हम रोते नहीं है पर बहन की शादी में किसी कोने में सबसे छुप कर रो रहे होते है। बेस्ट चीज़ ये है आपको बहनों के सामने दिखावा नहीं करना पड़ता, वो आपकी उन सभी बुरी आदतों को जानती है जो आप इस सभ्य समाज में कर नहीं सकते। तो सिर्फ़ राखी पर नहीं जब भी मौका मिले अपनी बहनों को पास बिठाओ और उन्हें बताओ की उनके होने से आप आज एक बेहतर इंसान हो, साथ ही ये भी बताना की वो दुनियां की बेस्ट बहन है।


:-🖋 मनीष पुंडीर 



Saturday, February 6, 2021

आत्मसंदेह



              ये शब्द सुनने में अजीब लग रहा होगा पर ये हमारे साथ हर वक्त साथ रहता हैं, सबके घर में कुछ ऐसी चीजें सिखाई जाती हैं कि हमें खुद पर संदेह होने लगता कि हम सही हैं या गलत। आप में से कुछ इससे अंधविश्वास से जोड़ कर भी देख सकते हैं, जैसे आपने पूजा करने को दिया जलाया और वो थोड़ी देर बाद बुझ गया जब की उसमें तेल की मात्रा भी पर्याप्त थी। तो आपको घरवालों से सुनने को मिलता हैं तूने मन से नहीं जलाया होगा, इस पर आप खुद के बारे में अंतर् मन में बात करते हैं क्या सच में ??? ऐसा कुछ है या ये महज़ एक सामान्य बात है।

     आत्मसंदेह जन्म देता हैं आत्ममंथन को जो आपके बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर पाने में आपकी सहायता करता हैं।हर कोई अपनी कहानी में हीरो होना चाहता हैं,पर असल में वो कितना उस पर खरा उतरता हैं यही मंथन का विषय हैं। ये मंथन आपको एक नजरिया देता हैं जिसमें आपको ये समझ आने लगता हैं कि कौन से वो पक्ष हैं जिन पर आपको ध्यान देना हैं।आप जाने अनजाने ये आत्मसंदेह करते हैं, अपने मन में दूसरों से तुलना करके या जब चीज़े आपके विपरीत जा रही हो। 

          कुछ घरों में आपकी छींक से भी आपको अच्छा बुरा आंका जाता हैं,कभी किसी नए काम कर बारे में बात हो और आप छींक दो तो सबका ध्यान आपकी तरफ़ ही केंद्रित हो जाता हैं। हमारा मन ही इन चीज़ों को बढ़ावा देता हैं,आप खुद को ही आंकते रहते हैं की मैं इन मापदंडों पर खरा उतरता हूं की नहीं। आत्मसंदेह अच्छा बुरा दोनों हो सकता हैं वो सब आप पर निर्भर हैं कि आप उसे कैसे लेते हैं।कुछ इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि हम ही शायद बदनसीब हैं। दूसरी ओर बाकी खुद को ही चुनौती देते हैं नहीं हम इस सोच को बद लेंगे, आखिर में जब वो उस संदेह को पार पा लेते हैं तो और बेहतर महसूस करते हैं।

          आखिर में इतना कहूंगा आत्मसंदेह आपको मंथन करवाएं तो अच्छा हैं पर इसके विपरीत आप खुद पर इसे हावी होने देंगे तो फिर आप मानसिक तौर पर कमज़ोर होते रहेंगे।

Friday, December 25, 2020

ख़ुशी का तराज़ू।

ख़ुशी का तराज़ू....

 दिल को कहां सोचना आता है??
 वो तो बस प्यार चाहता है,
 फ़र्क फितरत का ही तो है वरना,
 कितना मुश्किल है मासूमियत बनाए रखना??

कितनी महंगी होती है खुशियां ??
इस सवाल के सबके अपने मुताबिक जवाब है...
वो जो आपके लिए फ़ालतू हो,
आज भी शायद वो कुछ किसी के लिए  ख़्वाब है।

क्यों नापतोल करना खुशी में,
पैसा लगता है क्या बेफिक्र हंसी में??
सर्दी में धूप की गरमाहट,
मां के कदमों की आहट..
नमकीन से मूंगफली चुन के खाना, 
नहाते वक्त गाना गुनगुना...
ढूंढने निकलोगे तो हज़ार वजह है,
वरना लोग खुश होने के लिए....
आज भी सही वक्त के इंतज़ार में लगे है।

Tuesday, December 22, 2020

तुलना

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ हैं,अपने दिल की कहने का हक़ हैं... बस इसी सोच को बढ़ावा देने का ये प्रयास हैं.


                   बहुत दिनों बाद लिख रहा हु, इस बीच सब बदल गया हैं। मन स्थिर नहीं था तो इसलिए लिखने को बहुत था पर सही शब्द नहीं समझ आ रहे थे, आज थोड़ा धूप में बैठे थोड़ा दिमाग खुला तो लौट आए फिर से अपनी सुना-ने। आजकल एक चीज आपको सबके पास मिल जाएगी चाहे वो नौकर हो या मालिक बड़ा हो या बच्चा "इंटरनेट" , अब इसे जियो की मेहरबानी भी कह सकते है खैर मैं भी अपना समय उसी पर खराब कर रहा था तो एक विडिओ मे एक बात सुनने को मिली और वो दिल को छु गई। 

                  एक व्यक्ति थे  KBC में अपने अनुभवों के बारे में बता रहे थे , उन्होंने एक बात कही के दुख हमेशा तुलना करने से आता हैं। उसी बात को थोड़ा आगे बढ़ा कर आप तक बताने का प्रयास हैं, आजकल ये तो सब जानते हैं की आपको हर बात पर एक तराज़ू में तोला जाता हैं। अब वो बराबरी आपके परिवार वाले आपके साथ करे या आप खुद अपने मन के साथ , शर्मा जी का लड़का इतने मार्क्स लाया... उसके पास वो वाला फोन मेरे पास ये... उसकी जिंदगी तो मौज में कट रही है हमारी ही सही नहीं जा रही और आखिर में सबकी एक ही सोच अपनी तो किस्मत ही खराब हैं। 
                   
                  आपका ये सोचना शायद आपके अंदर ही एक हीन भावना भर दे, आइए इसे एक उदाहरण से समझे आप सबके घर में दूध आता हैं। उसी दूध से  घी दही मक्खन खोया पनीर सब बनता हैं पर सबकी बनने की विधि और समय अलग अलग हैं, पर आप ये सोचे की दूसरे के घर में इस दूध से घी बन रहा हैं पर मेरे घर में क्यू नहीं बन रहा ??? तो दोस्त दुख और कमी बाकी जगह नहीं आपके अंदर ही हैं। इसके लिए मैने बहुत पहले दो लाइनें लिखी थी.. 
  

              "दूसरों के महलों को देख , मैं अपनी झोपड़ी को कोसता रहा.. 
               धूल मेरी आँखों पर थी और मैं आई-ना पोंछता रहा "


              तो रिश्ता भाव कोई भी हो ये तुलना करना ही आपके दुख का कारण हैं, सबके अपने अपने सुख दुख हैं अपनी अपनी कहानी हैं। कोई घर की लक्ष्मी तो कोई घर की नौकरानी हैं, कोई महलों में भी अकेला हैं तो कोई अपने मकान की सेठानी हैं । मैं सही वो गलत.. हर बार मैं ही क्यों ??  ये सब सोच रखने से हमेशा आपका ही नुकसान होगा तो अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशें में लगे रहे। बाकी समय सबका आता है आपको जो जरूरी लगता है वो नहीं मिलता पर जो आपके लिए जरूरी होता है नसीब आपको वो देता है। तो तुलना करना बंद करे.. 

धन्यवाद 
🖋 मनीष पुंडीर 

(पढ़ के अच्छा लगे या बुरे लगे नीचे अपनी राये जरूर दे और दोस्तों के साथ भी शेयर करे ताकि मुझे और बेहतर करने की समझ मिले )

Thursday, October 8, 2020

समाज और समझ


              
ये सिर्फ़ एक लेख नहीं चीख है उन लोगों कि जो समाज के हिसाब से नहीं चलते तो उन्हें गलत कह दिया जात है। अपने यहां एक बहुत बड़ी समस्या है कि सबको अपने काम से मतलब नहीं है दूसरे क्या कर रहे है इसकी चिंता अधिक है।अपने घर में दिक्कतें चल रही हो पर परेशानी इस बात से है कि पड़ोस में लोग क्यों खुश है। 

                   सच कहूं तो ये एक मिथ्या भर है कि लोग क्या सोचेंगे अगर आप अपने हिसाब से चलेंगे तो, अब वो तो लोग सोचेंगे उन्हें ही करने दो क्यूंकि आप उनको खुश करने नहीं आए हो सबसे पहले ख़ुद की खुशी बहुत जरूरी है। इस बात को थोड़ा और समझते है अगर आजकल कोई लड़की खुली विचाधारा की है, सबसे हसीं खुशी बात करती है तो उसे चरित्र प्रमाण पत्र देने वाले खूब मिल जाएंगे।

                       हम आप बुरे नहीं है बुरे वो समाज के ठेकेदार जिन्हें अपनी बहु बेटियों का घुंघट तो प्यारा है, पर साथ ही अपने कार्यक्रम में लड़कियों से नाच करवा कर वो अपनी शान समझते है। ये फायदे के सगे है कब आपको धर्म,जात आपकी इज्ज़त का हवाला देकर अपना काम निकलवा लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। जिस दिन आप अपने अंदर से ये संकोच का भाव निकाल दोगे के समाज क्या सोचेगा, बस उसी दिन से जीवन में आधी दिक्कतें खत्म। 

                     हम कमज़ोर नहीं है हमारी मानसिकता कमज़ोर है, जो कभी हमें धर्म तो कभी जात के तराज़ू में बिठा देती है। पढ़ने में शायद अच्छा ना लगे पर ये घर से ही शुरू होता है, आपको पहले ही समझा दिया जाता है आपके दायरे क्या है।हमारे बड़ों कि ये समस्या है पहले वो हमे अच्छा पढ़ा लिखा देखना चाहते है, फिर हम अपनी पढ़ी लिखी विचारधारा को उनके सामने रखते है जिसमें कोई भेदभाव नहीं है तब वो हमें कहते है जायदा ही पढ़ लिख गया है जो हमें सीखा रहा है। 

:- मनीष पुंडीर 

तीन बहनों का एक भाई

                 मैं  तीन बहनों का एक भाई था और वो भी उनसे बड़ा, बचपन से ही उनकी परवाह करता रहा मां ने सिखाया था। मेरा बचपन थे वो अभी हाल ही...